दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया के देशों के बीच दोस्ताना व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गेट की शुरुआत की गई थी जिसका 1 जनवरी 1995 को नाम बदलकर विश्व व्यापार संगठन
(डब्ल्यूटीओ)कर दिया गया| वर्तमान में इसके 164 सदस्य हैं जिसमे से एक देश भारत भी हैं |
इस पोस्ट में जल्द ही एक क्विज भी डाला जायेगा जो की WTO से संबंधित प्रश्नों पर आधारित होगा| जो आपके आगामी SSC,Bank,UPSC,Railways Exam के लिए काफ़ी लाभदायक सिद्ध होने वैसे आप इस पोस्ट को पूरा पढ़े सारी जानकारी NCERT बुक से इकठा की गई हैं|
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हमें सिर्फ अपनी संघर्ष (Struggle) करने की क्षमता बढ़ानी है, सफलता (Success) का मिलना तो तय है ।– स्वामी विवेकआनंद
डब्ल्यूटीओ का लक्ष्य वैश्विक व्यापार के नियमों को अधिक कारगर बनाने के साथ-साथ सेवाओं और कृषि के विकास और व्यापार के लिए वैश्विक स्तर पर अनुकूल माहौल बनाने का रहा है| लेकिन समय समय पर विकसित और विकासशील देश इसकी नीतियों को लेकर चिंता जाहिर करते रहे हैं| हाल ही में अमेरिका के कई देशों के साथ ट्रेड वॉर से ऐसा माहौल बना जिसमें डब्ल्यूटीओ भविष्य पर भी सवाल उठने लगे हैं|
प्रीवियस इयर प्रश्न उत्तर क्विज
हमे आपके लिए कुछ प्रीवियस इयर प्रश्नों का भी एक संग्रह बनाया हैं जो की विश्व व्यापार संगठन यानि WTO से सबधित हैं और जैसे जैसे हमारे पास WTO से संबंधित प्रश्न आयेंगे हम उन प्रश्नों को यहाँ लिख देंगे|आप Gkpadho एंड्राइड एप भी डाउनलोड कर सकते हैं जब भी कोई अपडेट होगा तो एप रहने पर आपको सुचना मिल जाएगी|
ये सभी प्रश्न हाल के वर्षो में किसी न किसी प्रतियोगी परीक्षा में पूछे गये हैं | सही जवाब |
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विश्व व्यापार संगठन (WTO) को पहले क्या कहते थे ? | GATT |
WTO मुख्यतः किसको बढ़ावा देता है ? | बहुपक्षीय व्यापार को |
(WTO) किस वर्ष शुरू किया गया था ? | 1995 ई० में |
WTO का मुख्यालय कहाँ है? | जेनेवा |
विश्व व्यापार संगठन के साथ समझौते के अनुसार भारतीय पैरेंट अधिनियम 1999 ई० में संशोधित किया गया था । वह अधिनियम किस वर्ष लागू हुआ था ? | 1970 ई० में |
विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.) अस्तित्व में कब आया था ? | 1 जनवरी, 1995 को |
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का मुख्य प्रहरी कौन है ? | विश्व व्यापार संगठन |
सदस्य देशों के बहुपक्षीय व्यापार सम्बन्धों को सुकर बनाना तथा व्यापार नीतियों की समीक्षा करना किसका मुख्य कार्य है | विश्व व्यापार संगठन का |
विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) के साथ दिए गए समझौतों का पालन करते हुए भारत द्वारा किए गए अधिकांश आयातों से मात्रात्मक प्रतिबन्ध (Quantitative restrictions) कब हटाया गया था ? | 1 अप्रैल, 2001 |
विश्व व्यापार संगठन का मुख्य उद्देश्य क्या है ? | व्यापार प्रतिबन्धों को शनैः शनैः घटाते हुए अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के परिणाम में वृद्धि करना |
मूल्य की दृष्टि से सकल विश्व व्यापार में भारतीय शेयर कितना है ? | -2% |
1950 ई० से विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी कैसी रही है ? | मिश्रित प्रवृत्ति प्रदर्शित करती रही है। |
विश्व व्यापार संगठन स्थापना कैसे हुई ?
दुनिया के सभी देशों को व्यापार के लिए मंच मुहैया कराने के मकसद से 1 जनवरी 1995 को का गठन हुआ इसे जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड यानी गेट की जगह बनाया गया| गेट की स्थापना दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1948 में हुई थी जब 23 देशों ने कस्टमर टेरिफ कम करने के लिए हस्ताक्षर किए थे| दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति पर सभी देशों के बीच व्यापार को आसान बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्था बनाई गई उसे गेट यानि “जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड कहां गया|
23 अक्टूबर 1947 को इस पर हस्ताक्षर किया गया, जो जनवरी 1948 से लागू हुआ| शुरुआत में इसमें 23 देश शामिल हुए, जिसमें भारत भी एक था| समय बीतने के साथ ही इसमें अन्य देशों में होते गए| 1948 से लेकर 1986 तक गेट के माध्यम से व्यापार को काफी बढ़ावा मिला, देशों के बीच के आपसी झगड़ों का समाधान भी हुआ था हालाँकि इस दरमियान बहुपक्षीय व्यापार में अमेरिका और यूरोपीय देशों को गरीब विकासशील देशों की तुलना में ज्यादा फायदा हुआ| चीन ने कभी भी गेट को स्वीकार नहीं किया, चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बना| 1995 तक इसी के तहत अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियम कायदे बनते रहे लेकिन विश्व व्यापार संगठन बनने के बाद गेट को बंद कर दिया गया|
डब्ल्यूटीओ बनने में लंबा वक्त लगा 8 दौर की वार्ता के बाद इस संगठन का स्वरूप सबके सामने आया| सबसे लंबा दौड़ रहा उरुग्वे दौर की वार्ता जो 1986 से शुरू होकर 1994 में खत्म हुई| 1986 में शुरू हुई उरुग्वे दौर की वार्ता के बाद गेट का स्वरूप तेजी से बदलने लगा|1948 से 1986 तक देशों की आंतरिक विषयों को गेट करार के तहत नहीं लाया गया|
अमेरिका के दबाव में आंतरिक संप्रभुता से जुड़े विषय भी शामिल कर लिए गए और नए समझौते को तैयार करने के लिए अमेरिका के आर्थर डंकन के अगुवाई में टीम बनी| 1986 में डंकल ड्राफ्ट बनना शुरू हुआ और 1991 में सभी सदस्य देशों के सामने चर्चा के लिए रखा गया|
इस मसौदे को बनाने वाली समिति में अमेरिकी और यूरोपीय देशों के प्रतिनिधियों की भरमार थी, मसौदे में ऐसी शर्त रखी गई जिनसे इन देशों को फायदा हो| भारत ने भी इस के प्रावधानों का विरोध किया उरुग्वे दौर के समझौते पर तमाम उतार-चढ़ाव के बाद 15 अप्रैल 1994 को मुरको के मराकेश में 123 देशों के वाणिज्य मंत्री ने हस्ताक्षर किए जिसमें भारत भी शामिल है|1 जनवरी 1995 को की विधिगत स्थापना हो गई और अनौपचारिक संगठन के रूप में गेट का स्थान ले लिया| इसकी स्थापना सदस्य राष्ट्रों की संसद से अनुमोदित अंतर्राष्ट्रीय संधि के आधार पर हुई है|
विश्व व्यापार संगठन का कार्य
डब्ल्यूटीओ का काम व्यापारिक संबंधों को लागू करना ,व्यापारिक समझौते के लिए मंच मुहैया कराना, व्यापारिक छात्रों का समाधान करना, राष्ट्रीय व्यापार नीतियों की समीक्षा करना, विकासशील देशों के लिए व्यापार नीति बनाना और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना है| निर्णय लेने के लिहाज़ से मंत्रस्तरीय सम्मेलन डब्ल्यूटीओ की सबसे बड़ी इकाई है| हर 2 साल में एक बार यह बैठक होती है इसी में डब्लूटीओ के महासचिव और मुख्य प्रबंधककर्ता का चुनाव होता है|
मंत्रीपरिषद् के बाद आम परिषद है जो व्यापार नीति समीक्षा इकाई के अलावा विवाद निपटान इकाई में भी हिस्सा लेता है इसके अलावा वस्तु परिषद, सेवा परिषद और बौद्धिक संपदा परिषद भी आम परिषद को ही रिपोर्ट करता है| डब्ल्यूटीओ का मुख्यालय जिनेवा में है इस में होने वाले हर फैसले में सभी सदस्य देशों का हस्ताक्षर जरूरी है|
विश्व व्यापार संगठन और भारत के बीच संबंध
भारत विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के समय से ही इसका सदस्य रहा हैं| भारत लंबे अरसे से कहता रहा कि खाद्य और कृषि सब्सिडी का पूरी तरह खात्मा संभव नहीं| इसके लिए भारत अपनी खाद्य जरूरतों और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम का हवाला भी देता रहा है| विश्व व्यापार संगठन की भेद भाव वाली निति को लेकर भारत में अपनी नाराजगी भी जताई है
1948 में जब “जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड्स” की स्थापना हुई तो भारत को उसी समय गेट का सदस्य बन गया| इसके बाद 1 जनवरी 1995 को इसका रूप बदलकर विश्व व्यापार संगठन यानि डब्ल्यूटीओ हो गया| भारत शुरू से विश्व व्यापार संगठन में अपनी मांगों को उठाता रहा है| 15 जनवरी 2001 को विश्व व्यापार संगठन ने भारत में अपने प्रस्ताव में कहा की खेती के आजीविका और खाद्य सुरक्षा पहलुओं को ध्यान में रखते हुए विकासशील देशों के लिए डब्ल्यूटीओ के समझौता तंत्र में एक खाद्य सुरक्षा बॉक्स बनाया जाना चाहिए| इसके साथ ही गरीबी हटाने,ग्रामीण विकास, ग्रामीण रोजगार कृषि के विविधीकरण के लिए खर्च की जाने वाली सब्सिडी को कम करने की शर्त से बाहर रखा जाना चाहिए|
इसके बाद 2008 तक विकसित और विकासशील देश अपने अपने पक्ष में अड़े रहे और कोई समाधान नहीं निकल पाया| इससे पहले 2004 में डब्ल्यूटीओ की बैठक में प्रस्ताव का संशोधित मसौदा सदस्य देशों को दिया गया| इसमें आयात सब्सिडी के प्रावधानों को और कड़ा करने का प्रस्ताव किया गया था| इसके बाद दिसंबर 2013 में बाली में हुई विश्व व्यापार संगठन की बैठक में भारत ने साफ कर दिया कि सब्सिडी पर 10 प्रति की ऊपरी सीमा मुमकिन नहीं है|
इसके लिए भारत में अपने खाद्य सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन से जुड़े कार्यक्रमों का हवाला दिया|भारत खाद्य सब्सिडी की सीमा का आकलन करने के फार्मूले में संशोधन करने की मांग भी करता रहा है| भारत का कहना है कि इसका आधार वर्ष 1986-88 के अंतरराष्ट्रीय मूल है जो अब अव्यवहारिक है|
बाली में 10 बिंदु पर एक सर्वसम्मत समझौता होना था इन 10 में से एक बिंदु कृषि सब्सिडी से भी जुड़ा था| इसका अनाज की सरकारी खरीद,राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून और खेती से जुड़े कारोबार पर सीधा असर पड़ता| भारत इस बिंदु पर राज़ी नहीं हुआ|आख़िर वार्ता को विफल होने से बचाने के लिए स्थाई समझौता हुआ, तब तक हुआ कि अगले 4 साल में अलग से वार्ता करके मामले को सुलझाया जाए| पीस क्लोज़ नाम से अस्थाई बिंदु भी जोड़ा गया| तय हुआ की जब तक स्थाई हल नहीं निकल रहा तब तक विकासशील देश 10 फ़ीसदी से ज्यादा सब्सिडी देते रहें और फिलहाल कोई देश उसे चुनौती नहीं देगा|
नवंबर 2014 विश्व व्यापार संगठन ने भारत में अनाज के सब्सिडी भंडार पर अंकुश हटाए जाने की मांग मान ली| भारत का कहना था कि देश में एक बड़ी आबादी को भोजन मुहैया कराने के लिए अनाज़ का सरकारी स्टॉक जरूरी है| वही दिसंबर 2015 को नेरोबी में विश्व व्यापार संगठन के हुए बैठक में खाद्य सुरक्षा और कृषि संरक्षण के लिए सब्सिडी को सीमित किए जाने के लिए समझौते पर अंतिम निर्णय किया जाना था लेकिन भारत और कुछ विकाशशील देश सब्सिडी को कम किए जाने के प्रस्ताव के पक्ष में नहीं थे|
विकसित देश चाहते हैं कि भारत किसानों से अनाज खरीदना बंद करें और राशन की दुकान की व्यवस्था भी हटाए, जबकि भारत ऐसा नहीं चाहता| दिसंबर 2017 में ब्यूनस आयर्स में आयोजित डब्ल्यूटीओ की बैठक में भारत ने अपने पुराने विचारों को ही दोहराया और कहा कि भारत का उद्देश्य अपने हितों और प्राथमिकताओं की रक्षा करना है| भारत में अपना पक्ष साफ करते हुए कहा कि 2015 में हुआ बाली समझौता उसके हितों की रक्षा करता है और स्थाई हल निकालने तक लागू रहेगा|
इस तरह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भारत में अनाज खरीद सुरक्षित रहेगी| इसके अलावा खाद्य सुरक्षा के लिए सार्वजनिक प्रतिभूतियों, कृषि विशेष, सुरक्षा व्यवस्था, कृषि सब्सिडी और अन्य विषयों पर कार्य जारी रहेंगे| इसके अलावा भारत अनौपचारिक तरीके से भी विश्व व्यापार संगठन को उद्देश्यपूर्ण बनाने की कोशिश में लगा रहा है| मार्च 2018 में भारत ने नई दिल्ली में विश्व व्यापार संगठन के 50 सदस्य देशों की मंत्रिस्तरीय बैठक का आयोजन किया| इस बैठक का एजेंडा काफी व्यापक था जिसमें कृषि ,सेवा,निवेश,व्यापार सरलता,ई कॉमर्स,संस्थागत विकास और जेंडर जैसे मुद्दे शामिल थे|
विश्व व्यापार संगठन में फिलहाल 164 सदस्य हैं 2016 में लाइबेरिया इसका163 वां सदस्य और 164वां सदस्य अफगानिस्तान बना!
विश्व व्यापार संगठन राष्ट्रों के बीच व्यापार के नियम बनाने वाला वैश्विक अंतर्राष्ट्रीय मंच है यह संगठन अनेक देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियों को सुगम बनाने में मदद करने के साथ ही व्यापारिक बाधाओं को दूर करने की भी कोशिश करता है| इसके अलावा वैश्विक व्यापार में विकासशील और अल्पविकसित देशों की भागीदारी सुनिश्चित करना भी इसके उद्देश्यों में शामिल है|
हम कह सकते हैं कि डब्ल्यूटीओ तमाम देशों के बीच व्यापार के लिए नियम कायदे बनाने वाला संगठन है साथी व्यापारिक मुद्दों पर वैश्विक समझौतों के लिए भी यह मंच उपलब्ध कराता है| इस संगठन के माध्यम से सभी देश व्यापार में होने वाली समस्याओं का समाधान निकालने की कोशिश करते हैं| सदस्य देशों के लिए डब्लू समझौते को अपनी-अपनी संसद में मंजूरी दिलाना जरूरी होता है भारत इसका संस्थापक सदस्य देश है|
डब्ल्यूटीओ की मंत्रिस्तरीय सम्मेलन
डब्ल्यूटीओ की अब तक 11 मंत्रिस्तरीय सम्मेलन हो चुके हैं| 1996 में जब पहली बार सम्मेलन सिंगापुर में हुआ तो सभी देशों के बीच कई मुद्दों पर व्यापक सहमति बनी थी| इसके बाद से अब तक कई बार साझा सहमति बनी| लेकिन कई अनसुलझे मुद्दे आज भी डब्ल्यूटीओ में मौजूद है|
विश्व व्यापार संगठन में सभी बड़े फैसले मंत्रिस्तरीय वार्ता में ही लिए जाते हैं| एक तरह से डब्ल्यूटीओ के अंदर निर्णय लेने वाला सबसे यह बड़ा निकाय हैं| आमतौर पर इसकी बैठक हर 2 साल में एक बार होती है| इस बैठक में डब्ल्यूटीओ के सभी सदस्य देशों के मंत्री शामिल होते हैं मंत्रिस्तरीय सम्मेलन किसी भी बहुपक्षीय व्यापार समझौते से संबंधित सभी मामलों पर निर्णय लेता है|
मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 1996
इसकी शुरुआत साल 1996 में हुई जब विश्व व्यापार संगठन की पहली मंत्रिस्तरीय वार्ता हुई| इसमें कई मुद्दों पर व्यापक सहमति बनी| इसमें व्यापर को आसान बनाने पर सहमति बनी|
इस वार्ता में चार ऐसे समूह बनाए गए जिन्हें सरकारी खरीद फरोख्त में पारदर्शिता, कस्टम से जुड़े मुद्दे ,व्यापार और निवेश के साथ साथ व्यापार और उससे जुड़ी स्पर्धा का जिम्मा सौंपा गया लेकिन विकसित और विकासशील देशों के बीच इन मुद्दों को लेकर काफी तकरार रही|
1998 में जिनेवा में दूसरी मंत्रिस्तरीय वार्ता हुई इसमें मोटे तौर पर दूरसंचार आईटीआई, इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पर जोर दिया गया|
1999 में अमेरिका के सियाटल में तीसरी मंत्रिस्तरीय सम्मेलन हुआ| इस वार्ता में सबसे ज्यादा नोकझोंक देखने को मिले और अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी|
इसमें खेली पर विकसित और विकासशील देशों के बीच सहमति नहीं बन पाई दुनिया के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुआ इस वार्ता को ज्यादातर देशों ने असफल करार दिया|
2001 में दोहा में चौथी मंत्रिस्तरीय सम्मेलन वार्ता हुआ और इसी वार्ता में चीन भी विश्व व्यापार संगठन का हिस्सा बना| इसमें दो घोषणा पत्र जाड़ी किये गये
खेती को लेकर समझौता सबसे अहम था| मुक्त बाजार में दाखिला, निर्यात में छूट से लेकर घरेलू समर्थन इसमें शामिल थे| दूसरे घोषणा पत्र में स्वास्थ्य के मुद्दों को शामिल किया गया इसमें खतरनाक बीमारियां और दवाइयों से जुड़े प्रावधान थे|
2003 में कानपुर में पांचवें मंत्रिस्तरीय वार्ता हुई अब तक 146 देशों के सदस्य बन चुके थे इस वार्ता में एक बार विकसित और विकासशील देशों के बीच तकरार हुई| सब्सिडी के मुद्दे पर भी सहमति नहीं बन पाई| विकसित देशो ने कहा जब तक विकासशील देश जब तक मुक्त व्यापार के लिए दरवाजा खोलते तब तक सब्सिडी पर वह लचीला रुख नहीं अपनाएंगे| और यह वार्ता भी असफ़ल रहीं|
2005 में हांगकांग में छठी मंत्रिस्तरीय वार्ता हुई| जिसमें कई समझौते हुए-सभी देश खेती से जुड़े निर्यात पर मिलने वाली सब्सिडी 2013 तक खत्म करने पर तैयार हुए, जबकि कपड़ों पर मिल रही निर्यात सब्सिडी को 2006 तक खत्म करने का फैसला लिया गया| 2009 में जेनेवा में सातवें मंत्रिस्तरीय वार्ता हुई| 4 साल बाद हुई वार्ता में आर्थिक मुद्दों पर कुछ ज़रूरी बातचीत हुई लेकिन को सहमति नहीं बन पाई|
2011 में जनेवा में आठवीं मंत्रिस्तरीय वार्ता हुई| इसमें इलेक्ट्रॉनिक, वाणिज्य ,छोटी अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर कुछ अहम फैसले हुए| इसमें व्यापार नीति की भी समीक्षा की गई| 2013 में बाली में नोबी मंत्रिस्तरीय वार्ता हुई| जिसमें खाद्य सुरक्षा और व्यापार सुविधा जैसे मुद्दे जोर शोर से उठे|
2015 में जब नैरोबी में दसवीं मंत्रिस्तरीय वार्ता हुई तो एक बार फिर खाद्य सुरक्षा और सब्सिडी का मुद्दा छाया रहा| भारत में पिछली बार इन मुद्दों पर कड़ा तेवर दिखाया और विकसित देशों से साफ कहा कि विकासशील देशों के हितों की अनदेखी नहीं हो सकती| ब्यूनस आयर्स की इसबार की बैठक में भी यही मुद्दा छाया रहा|
ग्यारवी मंत्रिस्तरीय वार्ता 11 दिसंबर 2017 के ब्यूनस आयर्स में हुई |
इसमें सेवाओं में घरेलू नियमन मछली पालन में सब्सिडी, ई कॉमर्स निवेश में सहायता और सूक्ष्म मझौली और लघु उद्यमों को बढ़ावा देने जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई लेकिन सहमति के अभाव में खाद्य सुरक्षा के लिए सार्वजनिक ग्यारंटी और अन्य कृषि विषयों पर कोई ठोस उपलब्धि हासिल नहीं हो पाई|
डब्ल्यूटीओ का भविष्य
अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही डोनाल्ड ट्रम्प डब्ल्यूटीओ के प्रति अपनी नाराजगी जताते रहे हैं उन्होंने संगठन को आगाह भी किया है कि अगर माहौल नहीं बदला तो अमेरिका कोई भी कदम उठा सकता है|
अमेरिका के संरक्षणवादी रवैए से दुनिया के कई देश ट्रेड वॉर के कगार पर खड़े हैं| अमेरिका समेत कई देश अपने पक्ष में व्यापार संतुलन बनाने के लिए उतावले दिख रहे हैं इसके लिए अमेरिका जैसे देश और वैश्य कारोबार के नियमों को तोड़ने को भी बिल्कुल तैयार है| वेश्विक कारोबार के नियम से जुड़ा सबसे बड़ा मंच यानि विश्व व्यापार संगठन के पास इसका कोई तोड़ नहीं दिख रहा है| ऐसे में डब्ल्यूटीओ के भविष्य को लेकर आशंकाएं पैदा हुए हैं|
जून में कनाडा के क्यूबेक में हुए जी 7 देशों के सम्मेलन में भी ट्रंप “अमेरिका फर्स्ट” की नीति का पालन करते दिखे| व्यापार को लेकर उनका रूप में इस नीति से ही आगे बढ़ रहा है उन्होंने इस सम्मेलन में स्पष्ट किया है कि कुछ देश अमेरिका को पिगी बैंक समझ कर लूट रहे हैं|
ट्रंप का मानना है कि डब्ल्यूटीओ के नियमों की वजह से अमेरिका के साथ व्यापार में चीन ,कनाडा ,मेक्सिको और यूरोपीय संघ के देश फायदे में है| हालात में बदलाव के लिए ट्रंप ने इन देशों से आयात होने वाले कई उत्पादो पर टेरिफ बढ़ाने का फैसला किया तो पलटवार करते हुए कई देशों ने भी अमेरिका से आयात होने वाली कुछ उत्पादों पर टेरिफ बढ़ाने का फैसला किया और यहीं से शुरू हुआ ट्रेंड वॉर|
इस ट्रेड वॉर से संरक्षणवाद की प्रवृत्ति बढ़ने लगी है| विश्व व्यापार संगठन ने इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए सही नहीं बताया है| डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक राबटॉस एजवेडो ने इस प्रवृत्ति को लेकर आगाह भी किया है| अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी अमेरिका को ऐसे हालात से बचने की नसीहत दी है|
इस साल की शुरुआत से ही अब तक अमेरिका ने चीन मेक्सिको कनाडा, ब्राजील, अर्जेंटीना, जापान,दक्षिण कोरिया, जर्मनी और यूरोपीय संघ के कई देशों और भारत की कुछ वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाने का फैसला किया है| प्रतिक्रिया में बाकी देश भी अमेरिका के प्रति वैसा ही कदम उठा रहे हैं| अमेरिका ने भारत के स्टील और एल्यूमिनियम समेत कई वस्तुओं पर कर बढ़ाया तो भारत में भी अमेरिका के 29 वस्तुओं पर 4 अगस्त से आयात शुल्क बढ़ाने का फैसला किया|
अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर सबसे गंभीर रूप ले चुका है| अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप चीन के 200 अरब डॉलर के आयात पर 10 फ़ीसदी शुल्क लगाने की चेतावनी दी है इससे पहले ट्रंप ने चीन से $50 अरब डॉलर मूल्य के आयात पर 25 फ़ीसदी शुल्क लगाने की मंजूरी दी थी| जवाबी कार्रवाई में चीन ने भी अमेरिका के कई वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाने का ऐलान किया| इसके साथ ही दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच ट्रेड वॉर तेज़ हो गया| ऐसे हालात में सवाल उठने लगा है कि अमेरिका में संरक्षणवादी नीति और ट्रेड वॉर के मामले में विश्व व्यापार संगठने प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रहा है|
अमेरिका की संरक्षणवादी नीति से भारत के कृषि क्षेत्र ,उद्योग और सेवा के क्षेत्र में मुश्किलें बढ़ सकती है| विकासशील देशों पर वैश्विक व्यापार युद्ध का नकारात्मक असर पड़ने की भी आशंका है| ऐसे हालात में भी भारत का मानना है कि विश्व व्यापार संगठन की प्रासंगिकता आने वाले दिनों के लिए और भी महत्वपूर्ण है| वाणिज्य और उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा कि विश्व व्यापार संगठन का अस्तित्व खतरे में है लेकिन वैश्विक व्यापार के नियमन के लिए इसका होना बेहद जरूरी है उन्होंने कहा कि अगर यह संगठन नहीं रहा तो सभी देशों को समस्याओं का सामना करना पड़ेगा|
एक और मुद्दा है जिस पर विश्व व्यापार संगठन का असर होता नहीं दिख रहा है| अमेरिका ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश वीजा नियमों को सख्त बनाने की राह पर है इससे भारत जैसे विकासशील देशों और दूसरे अल्पविकसित देशों के प्रतिभासंपन्न में पेशेवर लोगों के लिए मुश्किलें बढ़ सकती है| ऐसे पेशेवरों के लिए विकसित देशों में जाना और भी कठिन हो सकता है ब्रिटेन ने छात्रों के लिए आसान वीजा नियमों वाले देशों की सूची से भारत को अलग करने का फैसला किया है| वही अमेरिका भी एक के बाद एक बीजा प्रस्तावों को कठिन बनाने की राह पर है| इस मसले से निपटने में भी विश्व व्यापार संगठन का विकसित देशों पर ज्यादा असर नहीं दिखता है|
डब्ल्यूटीओ के वैश्विक व्यापार के नियमों के तहत पूंजी प्रभाव स्वतंत्र है प्रतिभा प्रभावी नियंत्रण मुक्त होना चाहिए| लेकिन इस मसले पर भी विश्व व्यापार संगठन की प्रासंगिकता पर सवाल उठते रहे हैं| स्थापना के बाद से विश्व व्यापार संगठन के लिए विकासशील और गरीब देशों के आर्थिक हितों को सुरक्षा रखना बड़ी चुनौती रही है| विकसित देशों के बीच ट्रेड वॉर बढ़ने और उस पर अंकुश नहीं लग पाने की वजह से विश्व व्यापार संगठन को आलोचना भी झेलनी पड़ रही है| हालांकि अभी भी अधिकांश देशों और जानकारों का मत है कि विश्व व्यापार संगठन ही वह मंच हैं जहां व्यापारिक ओर से निपटने का कोई सर्वमान्य हल निकल सकता है|
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