रोहिंग्या मूल रूप से म्यांमार की पश्चिमी सीमा के निवासी हैं रखाइन इलाके में इनकी सघन आबादी है | जो कि बांग्लादेश सीमा से सटा इलाका है दुनिया भर में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी 15 से 20 लाख के बीच है इनमें आधे से ज्यादा म्यांमार में रहते हैं | भारत में वर्तमान समय में करीब 14 हज़ार पंजीकृत रोहिग्या लोग रह रहें हैं |
म्यांमार के उत्तरी इलाकों में बसे रोहिंग्या समुदाय के बारे में मशहूर है कि यह लोग चौदहवीं सदी के दौरान बंगाल से म्यांमार आए थे दरअसल अरकान प्रांत का शासक मिन सा मोन 24 साल बंगाल में निर्वासित रहा 1430 में अरकान में बंगाल के शासक जलालुद्दीन का कब्जा हो गया और मिन सा मोन को जलालुद्दीन ने गद्दी पर बैठा दिया उसकी मदद के लिए कुछ बंगाली सैनिक और अधिकारी भेजे गए जो बाद में यही बस गए इन्हीं लोगों को रोहिंग्या कहा जाता है और अराकान प्रांत का ही दूसरा नाम रखाइन है |
1785 में अराकान पर बौद्धों ने कब्जा कर लिया करीब 35000 लोगों ने भागकर बंगाल में शरण ली उस वक्त बंगाल पर अंग्रेजों का शासन था 1826 में अराकान अंग्रेजों के कब्जे में था अंग्रेजों ने रोहिंग्या मुसलमानों को दोबारा अराकान में बसाना शुरू किया क्योंकि उन्हें खेती के लिए मजदूरों की जरूरत थी 1872 से 1911 के बीच इस इलाके में रोहिंग्या मुसलमानों की तादाद करीब 178000 थी |
रोहिंग्या पहली बार बांग्लादेश और भारत में घुसने की कोशिश नहीं कर रहे बांग्लादेश का दावा है कि 17 वीं शताब्दी की आखिरी सालों इसके बाद 18 वीं सदी के शुरुआती सालों और उसके बाद 1940 के दशक में भारी संख्या में रोहिंग्या बांग्लादेश पहुंचे अगर हाल ही के सालों की बात करें तो म्यांमार में रोहिंग्याओं के खिलाफ 1978 का ऑपरेशन ड्रैगन किंग के बाद बहुत से रोहिंग्या बंगला देश आगये |
S.N | हिंसा के बाद बांग्लादेश की ओर पलायन | साल |
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1 | ऑपरेशन ड्रेगन किंग | 1978 |
2 | ऑपरेशन प्यी थाया | 1991-92 |
3 | हिंसा | 2012 |
4 | तस्करी संकट और हिंसा | 2015-16 |
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