आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों चाहे वो किसी भी धर्म या जात से हो को दी जानी वाणी मदद को आर्थिक आरक्षण कहा जाता है| इसी कदम में सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए केंद्र सरकार 10 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था करने जा रही है| सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में इस फैसले से जुड़े प्रस्ताव पर मुहर लगाई गई है| सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दिलाने के लिए लोकसभा में 124 वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया है| इस विधेयक द्वारा संविधान की धारा 15 और 16 में संशोधन किया जाएगा| केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक को पेश किया है|
लोकसभा से पारित होने के बाद यह विधेयक राज्यसभा की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा, संविधान संशोधन विधेयक होने की वजह से इसे दो तिहाई बहुमत से पारित होना जरूरी होगा| सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े तबके को दिए जाने वाला आरक्षण अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों को मिल रहे आरक्षण की मौजूदा 50 फ़ीसदी सीमा से अलग होगा| फिलहाल अनुसूचित जाति को 15 फ़ीसदी आरक्षण, अनुसूचित जनजाति को 7.5 फ़ीसदी और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फ़ीसदी आरक्षण का लाभ मिल रहा है|
आर्थिक आरक्षण का लाभ किसे मिलेगा
- इस विधेयक के मुताबिक ऐसे परिवार के लोग इस आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं जिनकी सालाना आय ₹800000 या उससे कम होगी| इसके अलावा:-
- पांच एकड़ या उससे कम कृषि योग्य भूमि
- एक हजार वर्ग फीट या उससे कम का फ्लैट
- अधिसूचित नगरीय क्षेत्र में एक सौ गज से कम का फ्लैट
- गैर-अधिसूचित नगरीय क्षेत्र में 200 गज या उससे कम का फ्लैट, जो अभी तक किसी भी तरह के आरक्षण के अंतर्गत नहीं।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने 50 फ़ीसदी आरक्षण की सीमा बांध रखी है इंदिरा साहनी केस के मुताबिक 50 फ़ीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है यह सीमा तक बांधी गई थी जब सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की बात की गई थी जबकि नया आरक्षण आर्थिक आधार पर होगा|
केंद्र सरकार आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10 वीं सदी आरक्षण दिलाने के लिए संविधान में संशोधन के लिए प्रयासरत है| सरकार ने से जुड़ा 124 वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया है दरअसल संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया अनुछेद 368 में निर्धारित की गई है और इसके लिए दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से पास होने ज़रूरी है|
हालांकि अभी तक भारत के संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है यही वजह थी कि 1991 में जब यूपीए सरकार ने आर्थिक आधार पर 10 फ़ीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव किया तो सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय पीठ ने उसे खारिज कर दिया था| इसलिए सरकार को आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए संविधान में संशोधन करना होगा, इसके लिए अनुच्छेद 15 और 16 में बदलाव करना होगा, दोनों अनुच्छेदों में बदलाव कर आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का रास्ता साफ हो जाएगा|
अभी संविधान में जाति और सामाजिक रुप से पिछड़ो के लिए आरक्षण का प्रावधान है| संविधान संशोधन विधेयक के जरिए संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में एक धारा जोड़कर शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा|संसद में संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने के लिए सरकार को दोनों सदनों में कम से कम दो तिहाई बहुमत जुटा ना होता है इससे राज्य को अधिकार मिलेगा कि वह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों की तरक्की के लिए विशेष प्रावधान कर फायदा पहुंचा सके|
दरअसल संविधान में अनुच्छेद 15 केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के ही आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है| राज्य के पैसे से संचालित सार्वजनिक मनोरंजन स्थलों या सार्वजनिक रिसोर्ट में निशुल्क प्रवेश के संबंध में यह अधिकार राज्य के साथ-साथ निजी व्यक्तियों के खिलाफ भी प्रवर्तनीय है| हालाँकि राज्य को महिलाओं और बच्चों या अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति समेत सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से राज्य को रोका नहीं गया है| इस अपवाद का प्रावधान किया गया है क्योंकि इसमें वर्णित वर्गों के लोग वंचित माने जाते हैं और उनको विशेष संरक्षण की आवश्यकता है| वहीं अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोजगार के संबंध में अवसर की समानता की गारंटी देता है और राज्य को किसी के भी खिलाफ केवल धर्म,जाति ,लिंग, वंश, जन्म स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है| किसी पिछड़े वर्ग के नागरिकों का सार्वजनिक सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने और उनके लाभ के लिए सकारात्मक कार्यवाही के उपायों को लागू करने के लिए अपवाद बनाए जाते हैं| इसके अलावा किसी धार्मिक संस्थान के 1 पद को उस धर्म का अनुसरण करने वाले व्यक्ति के लिए आरक्षित किया जाता है| संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में देश के पिछड़े नागरिकों को आरक्षण देने का जिक्र है|
ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण की मांग कई जातियां कर रही है पिछले कुछ सालों से कई जातियों ने अलग-अलग राज्यों में बड़े बड़े आंदोलन किये है| जाट के अलावा पाटीदार, पटेल, गुज्ज, मराठा और कापू समुदाय के आंदोलन को देशभर ने देखा है|
हाल के बड़े आरक्षण आंदोलनों पर एक नज़र
साल 2015 में पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के बैनर तले गुजरात में बड़ा आंदोलन चला, आंदोलन में करीब 11 लोगों की जानें गई, सवा सौ लोग और पुलिसकर्मी पूरी तरह घायल हुए| इस आंदोलन में सोशल मीडिया का भी खूब इस्तेमाल हुआ| आंदोलन के दौरान कई बड़ी रैलियों का आयोजन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया| पाटीदार समुदाय की मांग है कि ओबीसी कोटे के तहत उन्हें भी आरक्षण मिले|
यूपीए सरकार ने चुनाव से ठीक पहले जाट समुदाय को ओबीसी की श्रेणी में शामिल किया था जिसे कोर्ट ने रद्द कर दिया था| इसे लेकर हरियाणा सहित कई राज्यों में जाट समुदाय के लोग सड़कों पर उतर आए और उनके आंदोलन ने हिंसक रूप अख्तियार कर लिया था| जाट आंदोलन में हरियाणा में जमकर हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ हुई| रेलवे और बस सेवा पूरी तरह ठप हो गई थी| आंदोलन के दौरान कई लोगों की जानें गई और राज्य को हजारों करोड़ रुपए की धन हानि हुई| राजस्थान में गुर्जर समुदाय अलग से आरक्षण की मांग को लेकर सड़क पर उतरा और कई दिनों तक रेलवे ट्रैक को जाम कर रखा|
आरक्षण आंदोलन गुर्जर समुदाय
- 2008 में आरक्षण को लेकर आंदोलन
- आरक्षण आंदोलन को लेकर हिंसा
- प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली व मुंबई के रेल रूट को ब्लॉक किया
- 2015 में एक बार फिर रेलवे ट्रैक पर कब्जा और हिंसा जिसके कारण करीब 200 करोड़ का नुकसान
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय के लोग कई बार सड़क पर उतरे, आरक्षण को लेकर आंदोलनकारियों ने कई बार हिंसा भी की हालांकि बाद में सरकार ने विधानसभा में मराठा आरक्षण बिल पास कर दिया| बिल के मुताबिक राज्य में मराठा को 16 फ़ीसदी आरक्षण मिलेगा| राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने मराठा समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा करार दिया था|
आंध्र प्रदेश में आरक्षण को लेकर आंदोलन
- आंध्र प्रदेश में ओबीसी वर्ग में आरक्षण की मांग कर रहे कापू समुदाय ने साल 2016 में पूरी गोदावरी में बड़ा आंदोलन किया|
- प्रदर्शन हिंसक होते ही कुछ इलाकों में कर्फ्यू लगाना पड़ा, पूर्वी गोदावरी में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की गई|
- कापू आरक्षण की मांग भी काफी पुरानी है|
- कापू यानि किसान समुदाय के लोग उत्तरी तेलंगाना और रायलसीमा में रहते हैं उनकी गिनती अगड़ी जातियों में होती है| आंध्र प्रदेश में उनकी आबादी तकरीबन 16 से 20 फ़ीसदी है|
भारत में आरक्षण को लेकर कई जातियों ने आंदोलन की है धनगर और गोर बंजारा जाति या खुद को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल कराने की मांग लंबे समय से कर रही है वहीं निशा समुदाय भी आरक्षण की मांग कर रहा है इसके अलावा भी कई जातियां समय-समय पर आरक्षण की मांग करती रही है|
आरक्षण का इतिहास
देश में आरक्षण का इतिहास बहुत पुराना है आजादी से पहले ही नौकरी और शिक्षा में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण देने की शुरुआत हो चुकी थी| इसके लिए विभिन्न राज्यों में विशेष आरक्षण के लिए समय-समय पर कई आंदोलन भी हुए हैं| आरक्षण का अर्थ है अपनी जगह सुरक्षित करना” हर एक व्यक्ति की इच्छा हर स्थान पर अपनी जगह सुनिश्चित करने या रखने की होती है चाहे वह रेल के डिब्बे में यात्रा करने के लिए हो या किसी अस्पताल में अपनी चिकित्सा कराने के लिए, विधानसभा या लोकसभा का चुनाव लड़ने की बात हो या किसी सरकारी विभाग में नौकरी पाने की|
- 1930, 1931 और 1932 में बाबा साहेब आंबेडकर ने प्रतिनिधित्व की मांग गोलमेज सम्मेलन में किया|
- 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रस्ताव पास किया जो पूना समझौता कहलाता है जिसमें दलित वर्ग के लिए अगल निर्वाचन स्थान आवंटित किये गए|
- 1935 के भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया|
- 1937 में समाज के कमजोर तबके के लिए सीटों के आरक्षण को गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में शामिल किया गया| भारतीय राज्यों में स्वशासन के अलावा संघीय ढांचे को बनाने के लिए ब्रिटिश शासकों ने कानून बनाया| इस एक्ट के साथ साथ ही शेड्यूल कास्ट शब्द का इस्तेमाल शुरु हुआ|
- 1942 में बाबासाहेब आंबेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के समर्थन के लिए “अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ” की स्थापना की, उन्होंने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की|
- 1946 के कैबिनेट मिशन प्रस्ताव में कई सिफारिशों के साथ अनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव दिया गया|
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