पंडित दीनदयाल उपाध्याय का पूरा जीवन सामाजिक समरसता का अनुपम उदाहरण है| दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्र निर्माण और समाज सेवा को ही अपना लक्ष्य मानकर जीवन भर उसके लिए कार्य करते रहे| पूरी दुनिया को एकात्म मानववाद जैसे प्रगतिशील विचारधारा से परिचित कराने वाले दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को हुआ था| वह भारतीय जन संघ के नेता होने के साथ ही भारतीय राजनीतिक और आर्थिक चिंतन को वैचारिक दिशा देने वाले पुरोधा थे| उन्होंने अपना जीवन लोकतंत्र को शक्तिशाली बनाने और राजनीति में जनता के वास्तविक को आगे रखने में लगा दिया|
दुनिया को एकात्म मानववाद के वैज्ञानिक विवेचना से परिचित कराने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक गंभीर दार्शनिक और सामाजिक चिंतक थे| इसके साथ ही वे ऐसे समर्पित संगठन कर्ता और नेता थे, जिन्होंने सार्वजनिक जीवन में व्यक्तिगत गरिमा के उच्चतम आयाम स्थापित किये|
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जीवन परिचय
- हाई स्कूल की शिक्षा वर्तमान राजस्थान के सीकर से हुआ|
- इंटरमीडिएट की परीक्षा पिलानी में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की|
- सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर से 1939 में ग्रेजुएशन की डिग्री ।
- MA की पढ़ाई के लिए आगरा के सेन्ट जॉन्स कॉलेज से की|
- ममेरी बहन की अचानक तबीयत बिगड़ने से MA की पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म वर्तमान उत्तर प्रदेश की पवित्र ब्रिज भूमि मथुरा के नगला चंद्रभान नामक गांव में हुआ था| उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय और मां का नाम रामप्यारी था| जब वे मात्र ढाई साल के थे तो उनके पिता का स्वर्गवास हो गया था, 1924 में उनकी मां का भी निधन हो गया| इसके बाद उनका पालन-पोषण उनके नाना के पास हुआ था|
छोटी सी उम्र में ही दीनदयाल उपाध्याय के ऊपर खुद की देखभाल के साथ-साथ अपने छोटे भाई को संभालने की जिम्मेदारी आ गई| उन्होंने अपनी शिक्षा वर्तमान राजस्थान के सीकर में हासिल की उपाध्याय ने इंटरमीडिएट की परीक्षा में विशेष योग्यता के साथ उनकी उन्होंने सनातन धर्म कॉलेज कानपुर से 1939 में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की, अंग्रेजी साहित्य में की पढ़ाई के लिए आगरा कॉलेज में दाखिला लिया|
इसके बाद उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र निर्माण और सार्वजनिक सेवा में लगा दिया| वे जीवन भर अविवाहित रहे| कानपुर में स्नातक करने के दौरान अपने मित्र बलवंत महाशब्दे की प्रेरणा से 1937 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सम्मिलित हो गए| आगरा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सेवा के दौरान उनका परिचय नानाजी देशमुख और भाऊ जी से हुआ|
सरकारी नौकरी में चुने जाने के बावजूद उन्होंने राष्ट्र और समाज सेवा को ही| चुनाव 1942 में प्रयाग से बीटी का कोर्स पूरा करने के बाद दीनदयाल उपाध्याय ने संघ शिक्षा वर्ग द्वितीय वर्ष पूरा किया और संघ के पूर्णकालिक प्रचारक होकर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले में आ गए| अपनी कर्मठता के कारण 3 वर्ष के अल्प काल में ही 1945 में उत्तर प्रदेश प्रांत के सह प्रांत प्रचारक बन गए| दीनदयाल उपाध्याय ने आर एस एस के माध्यम से देश सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया|
1950 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया और देश में राष्ट्रवाद की अलख जगाने के लिए आंदोलन शुरू किया| इस घटना क्रम में दीनदयाल उपाध्याय ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई|
पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्र और समाज सेवा
- 1942 में संघ शिक्षा वर्ग का द्वितीय वर्ष पूरा किया|
- संघ के पूर्णकालिक प्रचारक होकर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर गए |
- 1945 में उत्तर प्रदेश प्रांत के सह-प्रांत प्रचारक बन गए|
- आरएसएस के माध्यम से देश सेवा को जीवन का लक्ष्य बना लिया|
- 1950 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया|
- राष्ट्रवाद की अलग जगाने के लिए आंदोलन शुरू किया गया|
- 21 सितंबर 1951 को लखनऊ में राजनीतिक सम्मेलन का आयोजन हुआ|
- भारतीय जनसंघ की राज्य इकाई की स्थापना 121 अक्टूबर, 1951 भारतीय जनसंघ की स्थापना हुआ|
दीनदयाल उपाध्याय का जीवन दो भागों में समर्पित
- एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और दूसरा जनसंघ|
- भारतीय जनसंघ को राजनीति में स्थापित करने का श्रेय|
- राष्ट्र और समाज सेवा 1952 में जनसंघ का महामंत्री नियुक्त हुए|
- 1952 से 1967 तक जनसंघ के नीति-निर्धारक और पथ-प्रदर्शक रहें|
एकात्म मानववाद 1964 में ग्वालियर में भारतीय जनसंघ काअधिवेशन हुआ| इसी अधिवेशन में एकात्म मानववाद का विचार प्रस्तुत किया
अगले ही साल 1965 में इसे स्वीकार कर लिया गया था|
पंडित दीनदयाल उपाध्याय एकात्म मानववाद
- 1965 में पूना में जनसंघ का अधिवेशन हुआ|
- एकात्म मानववाद के बारे में विस्तार से बताया गया|
- व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट्र है|
- उसके बाद एकात्म मानववाद में मानवता को अपनाया गया था|
- इन सब इकाइयों में समाहित परस्पर पूरक संबंधों पर ज़ोर व्यक्ति केवल शरीर नहीं, शरीर पर ठीक से विचार किया जाना जरूरी है,मनुष्य का शरीर मन, बुद्धि और आत्मा का मिलन है।मानव को समग्र रूप में देखना चाहिए|
समग्रता मनुष्य को समाज के लिए उपयुक्त और उपादेय बनाती है। शरीर हमारे धर्म, जीवन और सभी कार्यों और लक्ष्यों का साधन है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की अवधारणाका विचार एकात्म मानववाद में समाहित है|
- विकेंद्रीकृत व्यवस्था के पक्षधर,सामाजिक क्षेत्रों के राष्ट्रीयकरण के खिलाफ
- बुनियादी जरूरतों के लिए राज्य पर आश्रित रहने की जरूरत नहीं है|
- शिक्षा के सरकारीकरण के विरोधी थे| उनका मानना था कि शिक्षा देने का काम सरकार के हाथों में नहीं दिया जा सकता है| सरकार उन्हीं क्षेत्रों में काम करे जिन क्षेत्रों में समाज या निजी क्षेत्र जोखिम नहीं लेते है पंडित दीनदयाल उपाध्याय का कहते थे कि आर्थिक और राजनीतिक ताकत का एक जगह जमा होना लोकतंत्र के खिलाफ है|
narsingh rajput
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