इस बार चुनावी साल होने की वजह से फरवरी में अंतरिम बजट पेश किया जाएगा, अंतरिम बजट में किसानों के मुद्दे को प्राथमिकता दिए जाने की उम्मीद है| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुना करने के लक्ष्य पर आगे बढ़ रही है और इसके लिए बीते कुछ सालों में कई कदम उठाए गए हैं| देश की कुल श्रम शक्ति का 48 फ़ीसदी से ज्यादा हिस्सा खेती और उससे जुड़ी उद्योग-धंधों से अपनी आजीविका कमाता है|
किसानों की बेहतरी और खेती को ज्यादा लाभदायक बनाने के लिए बजट में हमेशा हाथ-जोड़ होता है इस दिशा में वित्तीय वर्ष 2019 के बजट में भी कई उपाय किए गए है| यह बजट कृषि और किसान कल्याण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को तो दर्शाता ही है साथ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के परण को परिलक्षित करता है|
कृषि बजट 2019 के लिए आवंटन
- 2017-18 में कृषि मंत्रालय का आवंटन 51,576 करोड़ रुपये
- 2018-19 में 58,083 करोड़ रुपये का आवंटन
- 2018-19 में 6504 करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी
- 2009 से 2014 तक कृषि बजट एक लाख 21 हजार 82 करोड़ रुपये
- 2014 -से 2019 में दो लाख ।1 हजार 694 करोड़ रुपये
- पांच सालों में कृषि बजट में 74.5% की • वृद्धि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार एक ओर विभिन्न फसलों की उत्पादकता उत्पाद बढ़ाने के लिए लगातार कदम उठा रही है वहीं किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य मिल सके इसके लिए भी कटिबद्ध है| वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के आम बजट में 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में अनेक योजनाओं की घोषणा की है|
कृषि बजट 2019 के लिए घोषणा
- कृषि क्षेत्र के लिए संस्थागत ऋण में बढ़त
- 2014-15 के लिए 8.5 लाख करोड़ रुपये संस्थागत ऋण
- 2017-18 में 10 लाख करोड़ रुपये
- 2018-19 के बजट में 11 लाख करोड़ रुपये
- सूक्ष्म सिंचाई कोष स्थापित करने की घोषणा
- मत्स्य क्रांति अवसंरचना विकास कोष
- पशुपालन के लिए आधारभूत सुविधा विकास कोष,दोनों के लिए स्थाई निधि 10 हजार करोड़ रुपये
- मछली पालन और पशुपालन के लिए आधारभूत संरचनाओं का विकास के लिए सस्ता ऋण उपलब्ध कराना मकसद
- ऑपरेशन फ्लड की तर्ज पर ऑपरेशन ग्रन्सिन
- 2000 करोड़ रुपये से कृषि बाजार अवसंरचना कोष
- कृषि विपणन में खुदरा बाजार की अहमियत , इन बाजारों को Gramin Retail Agriculture Market का नाम
- 22 हजार ग्रामीण हाट और 585 कृषि उत्पाद विपणन समिति में सुधार यानी ई-नैम को सभी कृषि उत्पाद विपणन समिति से जोड़ने का एलान ।
1290 करोड़ रुपए के साथ राष्ट्रीय बांस मिशन की शुरुआत करने का प्रस्ताव रखा गया है| कृषि उत्पादों के निर्यात की संभावना को देखते हुए 42 मेगा फूड पार्क में अत्याधुनिक परीक्षण सुविधाएं स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है| बजट में प्राइस एंड डिमांड फोरकास्टिंग के लिए एक संस्थागत तंत्र की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है इसके जरिए किसान सही समय यह फैसला ले सकेंगे की कितनी मात्रा में कौन सी फसल उगाना अधिक लाभप्रद होगा|
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व की बात करें तो सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान आजादी के बाद से धीरे-धीरे कम होता जा रहा है|
बजट विशेष- कृषि जीडीपी में कृषि का योगदान
1950-51 में 55.40 प्रतिशत
2013-14 में घटकर 13.9 प्रतिशत
आधार वर्ष बदलने के बाद योगदान चढ़ा 2017-18 में 17.1 प्रतिशत योगदान
किसान अपनी फसल को बाजार में किसी भी कीमत पर बेचने के लिए आजाद होता है लेकिन कोई खरीदार नहीं मिलता है या कभी फसलों की कीमत गिर जाती है तो ऐसे वक्त में किसानों को काफी नुकसान होता है| सरकार किसानों को ऐसे स्थिति से उबरने और उनकी फसलों का वाजिब कीमत दिलवाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था लागू करती है जिसका मकसद किसानों के नुकसान को कम करना है|
न्यूनतम समर्थन मूल्य
किसी भी खाद्यान्न के लिए उत्पादन,आवश्यकता और मूल्य एक दूसरे से जुड़े हैं अगर उत्पादन बढ़ जाता है तो फसल की बिक्री मूल्य से कम हो जाती है ज्यादा उत्पादन से कृषि उत्पादों के मूल्य में भारी गिरावट को रोकने के लिए सरकार मुख्य फसलों का एक न्यूनतम बिक्री मूल्य निर्धारित करती है जो उस सत्र के लिए मान्य होता है इसके लिए सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिश पर कुछ फसलों की बुवाई की शुरुआत में ही न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा कर देती है|
न्यूनतम समर्थन मूल्य का मुख्य उद्देश्य किसान को मजबूरी वश सस्ते कीमतों पर अनाज बिक्री से बचाना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए खाद्यान्न की खरीद करना है| सरकार की यह कोशिश होती है कि अगर किसी साल अनाज का उत्पादन ज्यादा हो जाए या बाजार में अधिकता के चलते उसका मूल्य गिर जाए तो ऐसी स्थिति में अनाज की कीमतें एक सीमा से नीचे ना जाए, अगर ऐसा होता है तो सरकारी एजेंसियां इन खाद्यान्नों को सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद देती है|
फ़िलहाल सरकार 25 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है इनमें सात अनाज जिनमें धान, गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी शामिल है इसके अलावा 5 दाले चना, अरहर, उड़द ,मुंग, उरद, मसूर है साथ ही 8 तिलहन भी है जिन्हें मूंगफली, सरसों, तोरिया, सोयाबीन के बीज, कुसुंभी और खुरसानी, वर्जिनिया फूल उपचारित तंबाकू, नारियल, कच्चा कपास का जुट और गन्ना शामिल है|
न्यूनतम समर्थन मूल्य कैसे तय होता है?
न्यूनतम समर्थन मूल्य कई पहलूओं पर निर्भर करता है जिसमें उत्पादक की लागत, इनपुट मूल्य में परिवर्त,न इनपुट आउटपुट मूल्य समता, बाज़ार कीमतों की प्रवृत्तियां, मांग और आपूर्ति, अंतर फसल मूल्य समता, औद्योगिक लागत संरचना पर प्रभाव, जीवन यापन लागत पर प्रभाव, सामान्य स्तर पर प्रभाव, अंतरराष्ट्रीय मूल स्थिति किसानों द्वारा भुगतान किए गए और प्राप्त किए गए मूल्यों के बीच समता और निर्गम मूल्य पर प्रभाव आदि शामिल है| इसके लिए कृषि लागत और मूल्य आयोग जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आंखों को इकट्ठा करता है इसके बाद उसकी जांच और तुलना की जाती है इसके अलावा अलग-अलग राज्यों के कृषि वैज्ञानिक ,किसान नेता और सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात की जाती है इसके बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया जाता है|
न्यूनतम समर्थन मूल्य के कई सकारात्मक प्रभाव भी होते हैं इसके जरिए खाद्यान्न और अन्य फसलों की कीमतों में स्थिरता, नई तकनीकों किसानों में लोकप्रिय बनाने में मदद, गरीब लोगों के बीच आय के विकेंद्रीकरण के साथ ही कृषि के व्यापार शर्तो को उचित स्तर पर बनाए रखने में सहायता मिलती है लेकिन सार्वजनिक खरीद केंद्रों का पर्याप्त मात्रा में नहीं होने से कई बार किसानों को दिक्कत का सामना भी करना पड़ता है| हालाँकि दिसंबर 2018 में नए भारत के लिए रणनीति @75 के नाम से जारी अपनी रिपोर्ट में नीति आयोग में न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने को किसानों की आय बढ़ाने का एक आंशिक समाधान बताया है| नीति आयोग ने कृषि लागत मूल्य आयोग की जगह एक न्यायाधिकरण गठित करने को कहा है| रणनीति दस्तावेज में कहा गया है कि सरकार को संविधान के अनुच्छेद 323 बी के प्रावधानों के अनुरूप कृषि लागत और मूल्य आयोग की जगह कृषि न्यायाधिकरण स्थापित करने का विचार करना चाहिए|
किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2018 19 के लिए खाद्यान्न के उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य 290.25 मिलियन टन अनुमानित किया है| देश में 2017 18 के लिए खाद्यान्न के उत्पादन का आकलन 284.83 मिलियन टन है जो एक रिकॉर्ड है वही 2016 17 में कुल खाद्यान्न उत्पादन 275.11 मिलीयन था|
सितम्बर 2018 में कृषि मंत्रालय नई 2018 19 के लिए प्रमुख फसलों के उत्पादन के लिए पहले एडवांस अनुमान को जारी किया| इसके मुताबिक खाद्यान्न उत्पादन:-
खाद्यान्न उत्पादन
खरीफ खाद्यान्न उत्पादन
- 2018-19 में खरीफ खाद्यान्न उत्पादन 141.59 मिलियन टन
- 2017-18 में 140.73 मिलियन टन
- 2018-19 में खरीफ चावल का उत्पादन 99.24 मिलियन टन
- पिछले साल खरीफ चावल का 97.50| मिलियन टन
- 2018-19 में मोटे अनाज का उत्पादन 33.89 मिलियन टन
- 2017-18 में 33.89 मिलियन टन
- मक्का का उत्पादन 21.47 मिलियन टन
- पिछले साल 20.24 मिलियन टन
- खरीफ दालों का उत्पादन 9.22 मिलियन
- पिछले साल 9.34 मिलियन टन
- खरीफ तिलहन का उत्पादन 2018-19 में 22.19 मिलियन टन, पिछले साल 21 मिलियन टन
- गन्ने का उत्पादन 383.89 मिलियन टन
- पिछले साल 376.9 मिलियन टन
- कपास का उत्पादन 32.48 मिलियन
रबी फसलों का उत्पादन
- 2017-18 में 144.10 मिलियन टन
- 2016-17 में 136.78 मिलियन टन
- 2017-18 में उत्पादन 7.32 मिलियन टन अधिक
- 2017-18 में रवी चावल का उत्पादन 15.41 मिलियन टन
- 2016-17 में 13.40 मिलियन टन
- 2017-18 में गेहूं का उत्पादन रिकॉर्ड 99.70 मिलियन टन
- 2016-17 के दौरान 98,51 मिलियन टन
- रबी मोटे अनाज का उत्पादन 13.10 मिलियन टन
- 2017-18 के दौरान रवी दालों का उत्पादन रिकॉर्ड 15.89 मिलियन टन
- पिछले वर्ष 13.55 मिलियन टन उत्पादन
- रबी तिलहन का उत्पादन 10.31 मिलियन टन
- 2016-17 के दौरान 9.76 मिलियन टन
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
हर साल प्राकृतिक आपदा के चलते किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है बाढ़, आंधी, ओले और तेज बारिश से उनकी फसल खराब हो जाती है किसानों को ऐसे संकट और जोखिम से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने 13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ऐसी योजना है जिसके तहत किसानों को खरीफ की फसल के लिए 2% रबी और तिलहन फसलों के लिए 1.5 प्रतिशत और व्यवसायिक बागवानी से जुड़ी फसलों के लिए 5% की अधिकतम सालाना प्रीमियम राशि देनी होती है| बीमा दावों का निपटारा जल्द करना होता है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत बीमा दावों का निपटार 2 महीने के भीतर करना होता है|
पिछले साल जुलाई तक देश के 27 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों ने इसे या उससे ज्यादा मौसमों में अपनाया, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2016-17 में लागू की गई थी| उस साल मानसून की वर्षा काफी अच्छी हुई थी लेकिन उसके बावजूद उस साल इस योजना के तहत बीमा दावों का औसत 73% रहा| कुछ राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश में यह 114%, कर्नाटक में 135%, केरल में 132% और तमिलनाडु में 286% रहा| 2016-17 में 139 लाख किसानों के 15349 करोड़ रूपये से ज्यादा दावों का निपटारा किया गया|
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू करने के 2 साल के अनुभव के आधार पर और बेहतर पारदर्शिता, जवाबदेही और समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के संचालन दिशा निर्देशों को 1 अक्टूबर 2018 को संशोधित किया|इसके तहत किसानों के दावों के निपटारे में 10 दिनों से ज्यादा का विलंब होता है ऐसी स्थिति में राज्य, बीमा कंपनियों और बैंकों पर 12% वार्षिक ब्याज की दर से जुर्माने का प्रावधान किया गया है|
राज्य सरकार सब्सिडी में राज्य का हिस्सा जारी करने में 3 महीने की देरी करती है तो राज्य सरकार पर 12% वार्षिक ब्याज की दर से जुर्माना लगाया जाएगा|दावा राशि प्रक्रिया में भी संशोधन किया गया है उत्पादन निर्धारण के लिए 7 वर्षों के दौरान सर्वोत्तम उत्पादन के 5 वर्षों पर विचार किया जाएगा| फसल के नाम में बदलाव निश्चित तारिक से 2 दिन पहले तक किया जा सकता है|फसल कटाई के बाद ओले से होने वाली हानि को भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में शामिल किया गया है|
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नियम में बदलाव
- दावों के निपटारे में दस दिनों से ज्यादा की देरी पर जुर्माना 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से जुर्माना
- सब्सिडी में राज्य सरकार के हिस्से जारी होने में तीन महीने की देरी, राज्य सरकार पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से जुर्माना
- उत्पादन निर्धारण के लिए 7 वर्षों के दौरान बेहतर उत्पादन के 5 वर्षों पर विचार
- फसल के नाम में बदलाव निश्चित तारीख के दो दिन पहले तक
- फसल कटाई के बाद ओले से होने वाली हानि भी शामिल
- बादल के फटने और आग जैसी स्थानीय आपदाएं भी शामिल
- प्रचार और जागरुकता के लिए ब्यौरंवार योजना
- प्रति कम्पनी प्रति व्यक्ति प्रीमियम की 0.5 प्रतिशत राशि निर्धारित
- सदाबहार बागवानी फसलें पायलट आधार पर शामिल
SUNIL KR SINGH
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