Jayaprakash Narayan Biography In Hindi-बिहार के एक छोटे से गांव में जन्मे जयप्रकाश नारायण से लोक नायक बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है| जीवन भर समाजवादी विचारधारा के जरिए समाज में बदलाव लाने का काम करने वाले जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने उम्र के ऐसे पड़ाव पर भारतीय राजनीति में वापसी कि जब देश के युवा परिवर्तन की राह पर बिना नेतृत्व ही चल पड़े थे| जेपी राजनीति से सन्यास ले चुके थे लेकिन लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए उन्होंने वापसी की और संपूर्ण क्रांति के नारे के साथ संघर्ष के मैदान में कूद पड़े|
जयप्रकाश नारायण की जीवनी
स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर स्वतंत्र भारत की राजनीति में जिन नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई उनमें लोकनायक जयप्रकाश नारायण का नाम प्रमुख है| जय प्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1910 को बिहार के सारण जिले के सिताबदियारा गांव में हुआ था, उनके पिता का नाम हरसू दयाल और माता का नाम फूल रानी देवी था|
माता-पिता की चौथी संतान जयप्रकाश जब 9 साल के थे तब वो अपना गांव छोड़कर कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लेने के लिए पटना चले गए थे| 1920 में जब जयप्रकाश नारायण 18 साल के थे तब उनका विवाह प्रभावती देवी से हुआ था| उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण पड़ाव तब आया जब उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आजाद के भाषण से प्रभावित होकर पटना कॉलेज छोड़कर बिहार विद्यापीठ में दाखिला ले लिया|
पढ़ाई के बाद 1922 में अपनी पत्नी प्रभावती को महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में छोड़कर जय प्रकाश नारायण कैलिफोर्निया के बर्कले विश्वविद्यालय में पढ़ने चले गए 1922 से 1930 के दौरान अमेरिका में रहे अमेरिका में पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिए उन्होंने खेतों, कंपनिओं, होटलों में काम किया काम और अध्ययन के दौरान उन्हें ग़रीबों को करीब से जानने का मौका मिला| उन्होंने अमेरिका से ही बी.ए और एम.ए की डिग्री हासिल की किन्तु पीएचडी की पढ़ाई पूरी नही कर सके| माताजी की तबीयत ठीक नहीं होने के कारण उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा था|
विदेशों में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद जय प्रकाश नारायण 1929 में भारत लौटें तब उनके विचारों में कार्ल मार्क्स का स्पष्ट प्रभाव था| भारत वापस आते वक्त लंदन में और भारत में उनकी मुलाकात कई कमुनिस्ट नेताओं से हुई, जिनके साथ उन्होंने भारत की स्वतंत्रता और क्रांति के मुद्दों पर चर्चा की|
राजनीतिक सफ़र
जवाहरलाल नेहरू के आमंत्रण पर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होगये| इसके बाद उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई| ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने पर 1932 में उन्हें जेल में बंद कर दिया गया| नासिक जेल में अपने कारावास के दौरान वे राम मनोहर लोहिया, अशोक मेहता, मीनू मसानी, अवध नारायण स्वामी और भी कई नेताओं के साथ संपर्क में आये|
दिसंबर 1939 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में जयप्रकाश ने लोगों से आह्वान किया कि दूसरे विश्व युद्ध का फायदा उठाते हुए भारत में ब्रिटिश शोषण को रोका जाए और ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंका जाए| इस वजह से उन्हें 9 महीनों के लिए जेल में डाल दिया गया था| अपने रिहाई के बाद उन्होंने महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस से मुलाकात की, स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत करने के लिए उन्होंने दोनों नेताओं के बीच मैत्री लाने की कोशिश की लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो सके|
अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जय प्रकाश नारायण का नेतृत्व गुण उभरकर सामने आया जब गांधी समेत कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था तब उन्होंने राम मनोहर लोहिया और अरुणा आसफ अली के साथ मिलकर आंदोलन को संभाला, किन्तु जल्द उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें हजारीबाग सेंट्रल जेल में रखा गया था|हजारीबाग सेंट्रल जेल से अपने साथियों के साथ जेल से भागने की योजना बनाई और 9 नवम्बर १९४२ दिवाली के मौके पर वे अपने 6 साथियों के साथ जेल से फ़रार होगये|
भारत की आजादी पाने के साथ ही जयप्रकाश को अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार सामाजिक परिवर्तन के लिए हिंसा की निरंतरता का पूर्ण विश्वास हुआ था| गरीबों के लिए उनकी प्रतिबद्धता कम नहीं हुई और यही उन्हें विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के करीब लाया| ये उनके जीवन का दूसरा महत्वपूर्ण चरण था, फिर 70 के दशक की शुरुआत में तीसरा चरण आया जब आम आदमी बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और महंगाई की विकृतियों से पीड़ित था|
1974 में गुजरात के छात्रों ने उनसे नवनिर्माण आंदोलन के नेतृत्व का आग्रह किया, उसी वर्ष जून में उन्होंने पटना के गांधी मैदान में एक जनसभा से शांतिपूर्ण संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया| उन्होंने छात्रों से भ्रष्ट राजनीतिक संस्थाओं के खिलाफ खड़े होने का आह्वान किया और 1 साल के लिए कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को बंद करने के लिए कहा|
जेपी चाहते थे कि छात्र अपने को राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए समर्पित करें, यह इतिहास का वह समय है जब उन्हें लोकप्रिय रूप जेपी बुलाया जाने लगा| इस आंदोलन के अंत में आपातकाल की घोषणा हुई और बाद में जनता पार्टी की जीत में तब्दील हुई| मार्च 1977 में केंद्र में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी, जनता पार्टी के तले सभी गैर कांग्रेसी दलों को एकत्रित करने का श्रेय जय प्रकाश नारायण को ही जाता है|
संपूर्ण क्रांति
संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान ही जयप्रकाश नारायण का स्वास्थ्य बिगड़ता शुरू हो गया था| आपातकाल में जेल में बंद रहने के दौरान उनकी तबीयत अचानक 24 अक्टूबर 1976 को खराब हो गई और 12 नवम्बर १९७६ को उन्हें रिहा कर दिया गया| मुंबई के जसलोक अस्पताल में जांच के बाद पता चला कि उसकी एक किडनी खराब हो गई थी, इसके बाद 8 अक्टूबर १९७९ को पटना में जयप्रकाश नारायण का निधन हो गया| 1965 में उन्हें लोक सेवा के लिए मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया| भारत सरकार ने 1999 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया|
आजादी की लड़ाई से लेकर 1977 तक तमाम आंदोलनों की मशाल थामने वाले जेपी यानी जय प्रकाश नारायण ने अपने विचारों, दर्शन और व्यक्तित्व से देश को एक नई दिशा दिखाई| भारत में समाजवादी पार्टी की स्थापना के साथ ही वह भारत छोड़ो आंदोलन और अराजकता के खिलाफ छात्र आंदोलन और संपूर्ण क्रांति के वाहक भी बने| संपूर्ण क्रांति ने देश में एक नई क्रांति का, एक नई ऊर्जा प्रवाह किया|
5 जून 1974 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण संपूर्ण क्रांति की शुरुवात और इस क्रांति की तपिश इतनी प्रभावशाली थी कि केंद्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था| जयप्रकाश नारायण की हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ा, बिहार से उठी संपूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बन कर भड़क उठी और जयप्रकाश नारायण घर घर में क्रांति के पर्याय बन गए|
संपूर्ण क्रांति जय प्रकाश नारायण का विचार और नारा था, जिसका उन्होंने इंदिरा गांधी को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए किया था| जेपी ने कहा कि संपूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है| आजादी के 2 दशक बाद देश के राजनीतिक और आर्थिक हालातों ने जय प्रकाश नारायण को विचलित कर दिया और यही वजह थी कि सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके जय प्रकाश नारायण दोबारा राजनीति में आने का निर्णय लिया|
दिसंबर 1973 में जेपी ने यूथ फॉर डेमोक्रेसी नामक संगठन बनाया और देशभर में युवावों से अपील की वह लोकतंत्र की रक्षा के लिए आगे आएं| गुजरात के छात्रों ने जब 1974 में चमन भाई पटेल की सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया तो जेपी गुजरात गये और नवनिर्माण आंदोलन का समर्थन किया| इसके बाद मार्च में पटना में छात्रों ने आंदोलन की शुरुआत की तब विद्यार्थियों के जोड़ देने पर जय प्रकाश नारायण ने बिहार में आंदोलन का नेतृत्व किया और यही बिहार आंदोलन बाद में संपूर्ण क्रांति में बदल गया|
साल १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन के बाद गुजरात और बिहार में व्यवस्था परिवर्तन को लेकर 1974 में शुरू हुआ छात्र आंदोलन आजाद भारत के लिए अनोखी घटना थी| दरअसल बिहार का छात्र आंदोलन उन समस्याओं का परिणाम था, जिन्हें लेकर छात्रों और आम जनता में जबरदस्त आक्रोश और असंतोष था| शैक्षिक स्तर में गिरावट महंगाई, शासकीय अराजकता और राजनीति में बढ़ता अपराधीकरण ऐसे मुद्दे थे जिन्हें लेकर आम आदमी काफी परेशान था| ऐसे में छात्र युवाओं का आंदोलन एक स्वाभाविक घटना थी|10 मार्च 1974 में पटना में शुरू हुआ आंदोलन ऐसा आंदोलन बन गया जिसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ा|
जब पटना के गांधी मैदान में जय प्रकाश नारायण ने पहली बार संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया तो 500000 से ज्यादा लोग इसके गवाह बने थे| जेपी ने संपूर्ण क्रांति को 2 शब्दों में उच्चारण किया हालांकि क्रांति शब्द नया नहीं था लेकिन संपूर्ण क्रांति एक नई बात थी क्योंकि गांधी परंपरा में समग्र क्रांति शब्द का इस्तेमाल किया जाता था, संपूर्ण क्रांति का नहीं |
जे पी नेता कहा था कि यह क्रांति है मित्रों और संपूर्ण क्रांति है विधानसभा का विघटन मात्र इसका उद्देश्य नहीं है यह तो महज मील का पत्थर है हमारी मंजिल तो बहुत दूर है और हमें अभी बहुत दूर तक जाना है| 5 जून को जेपी ने घोषणा की कि भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करने शिक्षा में क्रांति लाना ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकती है| क्योंकि यह इसी व्यवस्था की ही उपज है वह तभी पूरी हो सकती हैं जब संपूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और संपूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रांति, संपूर्ण क्रांति आवश्यक है| इस व्यवस्था ने जो संकट पैदा किया है वह संपूर्ण और बहुमुखी है इसलिए इसका समाधान संपूर्ण और बहुमुखी ही होगा| व्यक्ति का अपना जीवन समाज की रचना बदले, राज्य की व्यवस्था बदले तब कहीं बदलाव पूरा होगा और मनुष्य सुख और शांति का मुक्तजीवन जी सकेगा|
जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि संपूर्ण क्रांति में सात क्रांति शामिल हैं जिनमें राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और अध्यात्मिक क्रांति शामिल है| इन सात क्रांति को मिलाकर संपूर्ण क्रांति होती है|
संपूर्ण क्रांति आंदोलन को जनता का भारी समर्थन मिल रहा था, जेपी अप लोक नायक बन चुके थे| उनकी जनसभाओं में बढ़ती भीड़ से केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार हिल गई थी| आंदोलन को कुचलने के लिए तत्कालीन सरकारों ने हरसंभव उपाय अपनाएं| इस बीच 20 जून 1975 में गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई और जनता पार्टी सत्ता पर काबिज हो गई| इधर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया, इसके साथ ही जेपी आंदोलन को मिल रहे भारी समर्थन से घबराकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25-26 जून की आधी रात से आपातकाल की घोषणा कर दी| देशभर में सेंसरशिप लागू कर दी गई और जेपी समेत सैकड़ों बड़े नेताओं को निशा और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया|
19 महीने के काले कानून के बाद जनवरी 1977 में इंदिरा गांधी ने देश में आम चुनाव की घोषणा कर दी| उस समय जेपी की तबीयत काफी खराब थी इसके बावजूद उन्होंने चुनाव की चुनौती को स्वीकार किया और उत्तर भारत में कांग्रेस बुरी तरह से हार गई|
लोकनायक जयप्रकाश नारायण राजनीतिक विचार
लोकनायक जयप्रकाश नारायण राजनीतिक विचार और सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक और देश के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं| आजादी और देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के बाद महात्मा गांधी की परंपरा को आगे ले जाने में जिन नेताओं की भूमिका को सबसे ज्यादा याद किया जाता है उनमें जय प्रकाश नारायण सबसे महत्वपूर्ण है| आजादी के बाद के पहले आम चुनाव के बाद से ही जय प्रकाश के मानने लगे थे कि राज सत्ता चाहे जिस रूप में हो वह कल्याणकारी नहीं हो सकती है| उनका कहना था कि उसमें जनता की भागीदारी का प्रभाव नहीं होता है, अपने इन्हीं विचारों का अनुसरण करते हुए जब उन्होंने देखा कि राजसत्ता आक्रामक तानाशाह की तरह काम करने लगी है जिस में लोकतंत्र न के बराबर है तो वह खड़े हुए और उसे उखाड़कर फ़ेकने में भी सफल हुए|
गांधी भी उनके विचारों से इतना प्रभावित है कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह घोषणा की थी कि समाजवाद के बारे में जो जयप्रकाश नहीं जानते हैं उसे इस देश में दूसरा भी कोई नहीं जानता है| संपूर्ण क्रांति ने जय प्रकाश नारायण को लोकनायक बना दिया था, उन्हें के नाम ऐसे ही नहीं मिला आज़ादी की लड़ाई और उसके बाद लगातार वह आम लोगों के हितों की बात करते थे| हर तरह के राजनीतिक लूट की विकृति से दूर रहकर जय प्रकाश नारायण ने खुद को ऐसे शख्स के रूप में पेश किया, जिसका एकमात्र उद्देश्य जनकल्याण था| वह अहिंसक सत्याग्रही के साथ ही ऐसे व्यापारिक विचारक थे जो समाजवादी संकल्पों के जरिए देश में आमूलचूल परिवर्तन लाना चाहते थे|
गांधी जी के निधन के बाद उन्होंने खुद को ज्यादा उत्तरदाई व्यक्ति के रूप में पेश किया| इस रूप में उन्होंने देश को अपने समाजवादी विचारों के अनुकूल बनाने की कोशिश की, 50 के दशक में आई उनकी किताब भारतीय राज्य व्यवस्था की पुनर्रचना एक सुझाव आज के जमाने में हमारे लिए सबसे उपयुक्त राज्य पद्धति अथवा राज्य शासन व्यवस्था के स्वरूप को स्पष्ट करती है|
जयप्रकाश नारायण राष्ट्र के समतामूलक आदर्श को उन प्रजातांत्रिक मानकों में देखते हैं जिन पर सत्ता का नहीं जनता का अधिकार होता है| जवाहरलाल नेहरू की नीतियों से असहमति के कारण ही उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होना स्वीकार नहीं किया था| सत्ता को अपने स्वभाव के विपरीत मानकर ही उन्होंने उससे दूरी बनाए| वह सही मायने में गांधी जी के उत्तराधिकार को मानते थे जिसमें बिना किसी स्वार्थ के सेवा भाव प्रमुख था| यही वजह है कि 1967 में जब सर्वसम्मति से उन्हें देश के राष्ट्रपति पद पर बैठाने की बात आई तो उन्होंने इंकार कर दिया|
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