14 मई 2018 यह दिन मध्य पूर्व एशिया ही नहीं बल्कि दुनिया के इतिहास में एक बड़ी तारीख़ के तौर पर दर्ज हो चुका है| येरुशलम यानि एक ऐसा शहर जिसके लिए जितना खून बहा शायद ही कभी उतना किसी शहर के लिए बहा हो| येरुशलम जो एक नहीं ,दो नहीं बल्कि तीन तीन धर्मों का सबसे बड़ा धार्मिक केंद्र है|
इजराइल की राजधानी येरुशलम
जिस पर कब्जे के लिए सदियों तक संघर्ष हुआ| फिर वह दिन भी आया जब इजरायल ने शहर को अपनी राजधानी घोषित कर दिया| 1967 के युद्ध के दौरान इजराइल येरुशलम के पूर्वी हिस्से पर कब्जा कर लिया| दूसरी तरफ फिलिस्तीनी लोग थे जो चाहते थे कि जब भी फिलिस्तीन एक अलग देश बने तो पूर्वी यरुशलम ही उनकी राजधानी बनी|
फिलिस्तीन लोगों के लिए एक अलग देश और राजधानी के लिए दुनिया के ज्यादातर देश प्रतिबंध है| भारत भी उनमें से एक है लेकिन अमेरिका ने जब पुरे येरुशलम को इजराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने का ऐलान किया तो दुनिया सकते में आ गई| 14 मई 2018 का दिन अमेरिका के इस ऐलान की हकीकत में तब्दील होने का दिन है|
अमेरिका ने अपना दूतावास तेलअवीव से हटाकर येरुशलम में स्थापित कर दिया है जबकि अमेरिका के सहयोगी देश इस कदम को शांति भंग करने का बता रहे हैं| अमेरिका और इजरायल कह रहे हैं कि यह शांति के लिए उठाए कदम है|
ऐसा क्या है यरुशलम में जो फिलिस्तीन इजराइल और अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए शांति संघर्ष और अस्तित्व का सवाल बना हुआ है| क्या है येरुशलम की कहानी क्या है? इजरायल और फिलिस्तीन विवाद क्यों?अमेरिका ने यह कदम क्यों उठाया और कौन अमेरिका के साथ है और कौन नहीं ये पोस्ट पूरा पढने के बाद आपको सारा विवाद समझ में आएगा|
यरुशलम में अमेरिकी दूतावास दुनिया के इतिहास की एक बड़ी घटना है| जर्मनी समेत तमाम देशों की चेतावनी से समझा जा सकता है कि इस घटना का आने वाले दिनों में क्या असर होने वाला है|
येरुशलम तीन धर्मो का जन्म स्थल
येरुशलम सदियों से यह शहर ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है यह दुनिया के तीन प्रमुख धर्म यहूदियों, ईसाइयत और इस्लाम की आस्था का केंद्र है| इस शहर के आंगन में यह तीनों धर्म परवान चढ़े हैं हालांकि मौजूदा हालात में यह मानना मुश्किल है| कि इन तीनों धर्मों में किसी बात पर एकता भी हो सकती है लेकिन यह भी सच है कि सैकड़ों बिंदु हैं जहां यह तीनों धर्म एक नजर आते हैं| इनमें से कई बिंदु येरुशलम में है और जो एक चीज तीनों धर्मों को जोड़ती है वह है पैगंबर इब्राहिम जो इन तीनों के ही पितामह है|
आदम, नूह , लूथ , सुलेमान, याकूब, जकरिया, सालेह , ख्रिज़ , दाऊद , अय्यूब , इशक ,इस्माइल और मूसा समेत तमाम पैगंबर हैं जिनकी तीनों ही धर्म में बराबर मान्यता है| तोराह की तमाम कहानियां बाइबिल में और इन दोनों के तमाम किस्से और नबियों के कारनामे कुरान में जस के तस रख दिए गए हैं| साराह और हाजरा तीनों धर्मों में विशेष स्थान रखती है|
कुरान में ईशा की मां मरियम पर एक पूरा सूरा है इसके अलावा कई जगह न सिर्फ तीनों धर्मों के धर्म स्थल हैं बल्कि धार्मिक प्रतीक और पूजा पद्धतियां भी मेल खाती है| हिब्रू का सालों अरबी में सलाम हो जाता है| यहूदियों की टोपी वेटिकन में थोड़ी बड़ी तो अरबों में थोड़ा और बड़ी हो जाती है| यरुशलम में आकर तीनों ही धर्मों की आस्था चरम पर होती हैं| जो येरुशलम तीनों धर्मों को जोड़ सकता था वही अब तीनों के बीच विवाद का केंद्र बन गया है|
धर्म के नाम पर झगड़ा इनके के लिए नया नहीं है| इजराइल के जन्म से बहुत पहले इन तीनों के बीच का कई युद्ध और धर्म युद्ध हुए| यहूदियों ने कभी ईशा को बतौर पैगंबर मान्यता नहीं दी| ईसाई और मुसलमानों ने अपने-अपने धर्म को यहूदी धर्म का सुधरा हुआ रूप माना यानी विवाद की वजह कम नहीं है|
अब इजराइल जेरूसलम को अपनी राजधानी घोषित कर चुका है और अमेरिका ने से मान्यता भी दे दी है अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी इस मुद्दे पर इन दोनों से अलग राय रखती है संयुक्त राष्ट्र 1967 के युद्ध और उसके बाद कब्जा किए गए इलाकों पर इजरायल का हक नहीं मानता हैं|
येरुशलम और डोनाल्ड ट्रम्प
अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का मानना है कि येरुशलम किसी एक देश या धर्म का नहीं हो सकता| येरुशलम कि जिस सुलेमानी मंदिर को यहूदी अपना केंद्र मानते हैं उस पर ईसाई और मुसलमानों का भी उतना ही दावा है| यरुशलम में 158 गिरजाघर और 73 मस्जिदें हैं| जो इन दोनों धर्मों की इस शहर पर दावेदारी बनाए रखती है| यानी विवाद इतना सीधा नहीं है जितना अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू साबित करना चाहते हैं|
फिलहाल अमेरिकी दूतावास पूर्वी यरुशलम समेत पूरे शहर पर इजरायल का कब्जा साबित करने की कोशिश में है| डोनाल्ड ट्रम्प का मानना है कि से मध्य एशिया के कई विवाद खत्म हो जाएंगे| इधर यूरोपीय देशों समेत पूरी दुनिया मान रही है कि यह नए वादों को जन्म देगा| इस लिहाज से मध्य एशिया में अभी शांति की उम्मीद करना जल्दबाजी होगी| वैसे भी पैगंबर इब्राहिम के वंशजों में आसानी से फ़ैसले नहीं होते और ना ही यह आसानी से किसी के फ़ैसले मानते हैं|
येरुशलम का महत्व धार्मिक तो है ही लेकिन राजनीतिक रूप से भी इस इलाके की खास अहमियत है| यह इलाक़ा सिर्फ इजरायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद की वजह नहीं है बल्कि वैश्विक राजनीति का भी एक अहम केंद्र है|
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा शहर होगा जिसके लिए इतना खून बहा| यरुशलम पर कब्जे की यह कहानी शताब्दियों पुरानी है| दुनिया की कोई ताकत इस विवाद का अंत करने में कामयाब नहीं हो पाई| बीते कुछ वर्षों में यहां यथा स्थिति बनी हुई थी लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यरुशलम को इजराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देकर विवादों को हवा दे दी|
दरअसल इजराइल ने 1980 में कानून के तहत यरुशलम को अपनी राजधानी घोषित किया| लेकिन संयुक्त राष्ट्र समेत दुनिया के देशों ने उसे मान्यता नहीं दी| तमाम देशों के दूतावास तेलअवीव में स्थापित कर लिया जो येरुशलम से करीब 70 किलोमीटर दूर है| हालांकि इजराइल के प्रधानमंत्री निवास और कार्यालय येरुशलम में ही है| देश की सुप्रीम कोर्ट से भी येरुशलम से ही चलती है|
ट्रंप ने यह फैसला क्यों लिया? दरअसल उनके फैसले के मायने उनके चुनाव से जुड़े हुए हैं| अमेरिका में यहूदी वोटर्स पर ट्रंप की नजर पहले से ही थी| यहां तक की घोषणा पत्र में भी इस मुद्दे का जिक्र किया गया| माना जाता है कि ट्रम्प को वोट देने वाले कंज़र्वेटिव लोगो के लिए यह कदम बहुत मायने रखता है|
अमेरिका का एक बड़ा तबका इजरायल के पक्ष में रहा है और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अमेरिका और इजराइल के रिश्ते किसी से छिपी नहीं है| अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इजराइल अमेरिका का बड़ा सहयोगी माना जाता है| खासकर मध्य पूर्व में सामरिकऔर राजनीतिक मसलो पर इजराइल अमेरिका का सबसे बड़ा सहयोगी है|
फैसला अमेरिका में पहली बार नहीं लिया गया|दरअसल अमेरिका में साल 1995 के कानून के तहत ही फैसला लिया गया था| इस कानून के तहत अमेरिका का इजरायली दूतावास जेरूसलम में होना चाहिए| 1995 में अमेरिकी कांग्रेस ने यरुशलम दूतावास कानून पारित किया| हालांकि अमेरिका ने कभी भी यह कानून लागू नहीं किया था|
बिल क्लिंटन से लेकर जॉर्ज बुश और बराक ओबामा तक सभी राष्ट्रपति इस कानून से छूट लेने वाले दस्तावेज पर हर 6 महीने में हस्ताक्षर करते रहे| दरअसल कानून पास करने के बावजूद अमेरिका नहीं चाहता था कि वह येरुशलम की यथास्थिति भंग करें| लेकिन ट्रम्प ने यह फैसला कर इलाके में पुराने विवाद को ताजा कर दिया|
महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या अमेरिका ऐसा करने वाला अकेला देश है? आपको पता है कि अमेरिका के इस फैसले के बाद लैटिन अमेरिकी ग्वाटेमाला और पराग और कुछ देशो ने भी अपने दूतावास यरुशलम में स्थापित करने का फैसला किया है| जबकि होंडुरास के संसद में भी इससे जुड़ा एक प्रस्ताव पारित हो चुका है| वही चेक रिपब्लिक में भी कुछ इसी तरह के संकेत दिए हैं|
लैटिन अमेरिकी देशों के अमेरिका के कदम से कदम मिलाकर चलने के कारणों की पड़ताल करें तो यह समझ में आता है कि इन देशों की ट्रंप पर निर्भरता काफी बढ़ गई है| ग्वाटेमाला के वर्तमान राष्ट्रपति हाल ही में भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे हुए हैं| जबकि होंडुरास के राष्ट्रपति हालिया चुनाव में वोटर फ्रॉड के आरोपों से परेशान है| ऐसे में नेताओं को अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ जरूरत है|
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी दावा किया था कि अमेरिका अलावा करीब आधा दर्जन देश अपना दूतावास येरुशलम लेजाने को लेकर गंभीर है| दिसंबर 2017 में अमेरिका की और से येरुशलम को इजराइल की राजधानी घोषित किए जाने के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव पर 128 देशों ने अपनी सहमति जताई थी| अमेरिका के खिलाफ वोट करने वाले देश में भारत भी शामिल है| सिर्फ 9 देशो का समर्थन अमेरिका को मिला|
येरुशलम अगर पूरी दुनिया के लिए दिलचस्पी का केंद्र है तो इजराइल के जन्म की कहानी भी कम दिलचस्पी नहीं है| इजराइल का जन्म आधुनिक इतिहास की बड़ी घटनाओं में से एक है| इस सदी के सबसे ज्यादा संघर्षों की वजह भी यह है| दूसरे विश्व युद्ध के बाद से इजराइल फिलिस्तीन विवाद कई बार जंग की वजह बना| हजारों लोग इस वजह से अपनी जान गवा चुके हैं जबकि लाखों बेघर हैं|
इजराइल का जन्म और अरब इजरायल विवाद की कहानी
विवाह का इतिहास काफी पेचीदा है| कुछ लोग दूसरे विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों के बनाए नए मुल्क इजरायल को विवाद का केंद्र मानते हैं| हालांकि इस इलाके में संघर्ष की शुरुआत इससे काफी पहले ही हो चुकी थी| इस इलाके पर मुसलमान ईसाई और यहूदी बराबर का हक जताते हैं| और इन तीनो ही धर्मों में यरुशलम का बराबर धार्मिक महत्व है|
दरअसल इब्राहिम इन तीनों ही धर्म के प्रवर्तकों के पितामह माने जाते हैं| और यरूशलम इब्राहिम का शहर है इब्राहिम के दो बेटे थे| इस्माइल और इशाक| इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मोहम्मद इस्माइल के वंशज है तो इशक के वंश में यहूदी धर्म के प्रवर्तक मूसा और ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा का जन्म हुआ|
यहूदी और मुस्लिम्स के बिच युद्ध का इतिहास
इस्लाम के उदय के साथ पश्चिम एशिया की इस इलाके में यहूदी और ईसाई आबादी कम होने लगी| 1880 के आसपास यहां धर्म के नाम पर इलाके के मुस्लिम, यहूदी और ईसाइयों के संघर्ष हुए| इसके बाद यह इलाक़ा ब्रिटिश और ऑटोमन सत्ताओं के संघर्ष का केंद्र बना| इस दौरान यहां यूरोप से लाकर करीब 65 हज़ार यहूदी बसाए गए|
1914 में यहां अरब मूल के लोगों की आबादी करीब 5 लाख थी|1922 से यह इलाक़ा ब्रिटिश हुकूमत के कब्ज़े में था| इस दौर में भी यहां यहूदियों और फलीस्तीनियों के बीच दबदबे की जंग जारी थी| यहूदी अपने लिए नया देश बनाने की मांग कर रहे थे| 1917 में ब्रिटिश के तत्कालीन विदेश मंत्र ने यहूदियों से वादा किया कि फलस्तीन उनका नया देश होगा|
हिटलर के उदय के साथ यूरोप में यहूदियों की मुश्किलें बढ़ने लगी| लाखों यहूदी अपनी जान बचाकर यूरोप से भाग निकले| 1922 से 1939 के बीच तीन लाख से ज्यादा यहूदी फलीस्तीन पहुंचे| 1940 आते-आते स्थानीय लोगों ने बाहर से आने वाली यहूदियों का विरोध शुरू कर दिया| कई जगह हिंसक टकराव हुए|
लेकिन ब्रिटेन ने अरबों के विरोध को दबा दिया| इसी बीच 30 नवंबर 1947 को संयुक्त राष्ट्र ने विवाद वाले इलाके को यहूदियों और अरबों के बीच बांटने की योजना को सहमति दे दी| समझौते के मुताबिक 15 मई 1948 को इलाके से ब्रिटेन ने अपना कब्ज़ा छोड़ दिया| लेकिन अंग्रेज़ जाते-जाते इलाके का नक्शा हमेशा के लिए बदल गए|
15 मई 1948 को नये देश के रूप में इजराइल का जन्म हुआ| पडोश के अरब देशों ने इसका विरोध किया| इजरायल और अरब देशों के बीच जंग छिड़ गई| लेकिन पश्चिमी देशों की सहायता से इजरायल ने अरबो का विरोध कुचल डाला| फिलिस्तीन के बड़े इलाके पर इजराइल ने कब्जा कर लिया| लाखों की तादाद में फिलिस्तीनी मुल्क छोड़कर भागने को मजबूर हुए| इसके बाद शुरू हुआ संघर्ष का कभी ना रुकने वाला सिलसिला|
इजराइल का भूभा बढ़ता रहा और फिलिस्तीन नक्शे पर बनी बंदियों में सिमटता रहा| फलिस्तीन के नाम पर गाजा पट्टी और पश्चिमी तट नाम के दो टुकड़े रह गए|
1967 में अरब देशों और इजराइल के बीच दूसरी जंग हुई| 6 दिन के संघर्ष में इजराइल ने गाजापट्टी समेत कई और इलाकों पर कब्जा कर लिया| तब तक पश्चिमी तट जॉर्डन के पास था| 1969 में यासिर अराफात ने फिलिस्तीन की सत्ता संभाली|
1973 में सीरिया और मिश्र ने सिनाई और गुलाम इलाके छिनने के लिए इसराइल पर हमला किया लेकिन नाकामयाब रहे| 1978 में मिस्र और इजराइल के बीच कैंप डेविड संधि हुई लेकिन इलाके में शांति कायम नहीं हो सकी| 1982 में इजरायल ने लेबनान पर हमला कर बेरूत में हज़ारों हो फिलिस्तीनी शरणार्थियों को मार डाला| इस बीच में फ़िलस्तीन की जमीन पर नई यहूदी बस्ती बस्ती रही|
1987 में पश्चिमी तट और गाजा पट्टी में फिलिस्तीनियों ने फिर से आजादी का आंदोलन शुरु किया| 1993 में यासिर अराफात ने इजरायल के साथ ओस्लो में शांति संधि की| संधि के तहत पीएलओ और इजराइल ने एक दूसरे को मान्यता दे दी|
इसके साथ ही पश्चिमी तट और गाजा में एक निश्चित सीमा तक फलीस्तीन को शासन करने का अधिकार मिला| हालांकि इजरायल बाद में मुकर गया और उसने फलीस्तीन को आज तक आजाद देश नहीं माना| 2000 में इजरायल ने पश्चिमी तट के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया| 2008 में इजराइल ने हमले कर गाजा में सैकड़ों लोगों को मार डाला|
2011 में फिलिस्तीन ने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन राज्य को स्वीकार्यता दिए जाने की मांग की| इसी साल नवंबर में उसे यूनेस्को की सदस्यता हासिल हुई| लेकिन फिलिस्तीनियों का आजाद देश पाने का सपना अभी भी पूरा नहीं हो सका है|
येरुशलम का इतिहास
भूमध्य सागर और मृत सागर के बीच इजरायल की सीमा पर बसा येरुशलम दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है| येरुशलम दुनिया का सबसे पुराना और पवित्र शहरों में से एक है| इसे जीता गया यह तबाह हुआ और फिर बार-बार उठ खड़ा हुआ|
इसके भूगोल में बदलाव हुआ, इसकी संस्कृति भी समय के साथ-साथ बदली लेकिन नहीं बदली तो इसकी ऐतिहासिक स्थापत्य कला| यहां की शानदार ऐतिहासिक इमारतें आज भी इस शहर की पवित्रता, ऐतिहासिकता और धरोहर को अपने अंदर समेटे हुए इस शहर के अतीत को बयां करती है| यह शहर दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी की आस्था का केंद्र है|
तीनो धर्मो के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल का इतिहास
ईसाइयों के हिस्से में सबसे पवित्र चर्च “चर्च ऑफ़ द होली सेपुल्कर” जो दुनिया भर की ईसाइयों के लिए खास है| इस जगह पर ईसा मसीह की बहुत सारी यादें जुड़ी हुई है| ईसाई मान्यताओं के अनुसार ईसा मसीह को यही सूली पर लटकाया गया था| यही वो जगह भी है जहां ईसा मसीह फिर से जीवित हो गए थे| इस चर्च का प्रबंधन संयुक्त रुप से ईसाइयों के अलग-अलग संप्रदाय करते हैं| यह चर्च दुनिया भर के लाखों ईसाइयों का मुख्य तीर्थ स्थल है| जो ईसा मसीह के खाली मकबरे को देखने आते हैं| और यहां प्रार्थना करके उद्धार और सुख की कामना करते हैं|
मुसलमानों का यहाँ पवित्र स्थल गुंबदाकार डोम ऑफ रॉक और अल अक्सा मस्जिद है| यह पठार पर स्थित है जिसे मुस्लिम पवित्र स्थान कहते हैं| यह मस्जिद इस्लाम की तीसरी सबसे पवित्र जगह मानी जाती है| इसकी देखरेख और प्रशासन का जिम्मा एक इस्लामिक ट्रस्ट करता है|
मुसलमान मानते हैं कि पैगंबर अपनी रात्रि यात्रा में मक्का से यही आए थे| और उन्होंने आत्मिक तौर पर सभी पैगंबरों से दुआ की थी| मस्जिद कुछ ही दूरी पर एक आधारशिला रखी गई है जिसके बारे में माना जाता है कि मोहम्मद साहब यही से स्वर्ग की ओर गए थे| दुनियाभर के मुसलमान यहां नमाज अदा करने के लिए आते हैं|
यहूदियों के लिए पश्चिमी दीवार काफी महत्वपूर्ण है ऐसा माना जाता है कि कभी यहां पवित्र मंदिर खड़ा था और यह दीवार उसी की निशानी है| यह मंदिर के अंदर यहूदियों का सबसे पवित्रतम जगह “होली ऑफ होलीज” है|
यहूदी मानते हैं कि यहां पर सबसे पहले उस शिला की नींव रखी गई थी जिस पर दुनिया का निर्माण हुआ| यह भी मान्यता है कि यहां पर अब्राहिम ने अपनी बेटे इशाक की कुर्बानी दी थी| पश्चिमी दीवार “होली ऑफ होलीज” कि वह सबसे करीबी जगह है जहां से यहूदी प्रार्थना करते हैं| इसका प्रबंधन पश्चिमी दीवार के रबी करते हैं हर साल यहां दुनिया भर से लाखों यहूदी आते हैं और खुद को अपनी विरासत से जोड़ते हैं|
येरुशलम और यहूदी से संबंधित प्रीवियस इयर प्रश्न
Previous Year Question Related To Israel Judaism (Yahudi)
हाल के वर्षो में यहूदी , इजराइल से संबंधित पूछे गये प्रश्नों के संग्रह | उत्तर |
एडोल्फ हिटलर के लिए ‘शामी विरोधी नीति’ का अर्थ क्या था ? | यहूदी विरोधी नीति |
साइनागोग’ किस धर्म का उपासना-स्थल है ? | यहूदी धर्म |
‘नैसेट’ कहाँ की संसद है? | इजराइल |
किस अरब नेता ने इजराइल के साथ पी. एल. ओ. का शांति समझौता हस्ताक्षरित किया था ? | यासर अराफात |
‘वेस्ट बैंक’ कहाँ स्थित है ? | जोर्दान नदी के पश्चिम में, इस्राइल |
नेगर मरूभूमि कहाँ स्थित है ? | इस्राइल |
किस देश ने पूर्वी येरूशलम में 500 से अधिक आबादकार घरों की अनुमति दी है ? | इस्राइल |
वह देश जहां ड्रिप सिंचाई का अधिक कुशलता से इस्तेमाल किया जाता है | इज़राइल |
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