इस पोस्ट में हमलोग जानेंगे सबरीमाला मंदिर विवाद क्या है? विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला क्या रहा| सबरीमाला से जुड़ा विवाद का इतिहास क्या है कौन थे भगवन अयप्पा? ये सभी जानकारी हिंदी में उपलब्ध करवाया गया है, Sabrimala Temple Issue In Hindi.
सदियों से चली आ रही परंपरा को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था| इस साल 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश मिला चाहिए| 10 से 50 साल की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर लगी पाबंदी को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्य संविधान पीठ ने खत्म कर दिया|
सबरीमाला मंदिर विवाद क्या है?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पहली बार 17 अक्टूबर 2018 बुधवार शाम 5:00 बजे जब सबरीमाला मंदिर के कपाट खोले तो पूरे देश की नज़रे मंदिर पर टिकी थी| सब यह देखना और सुनना चाह रहे थे कि सालों से चली आ रही परंपरा के उलट सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार क्या महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत मिल जाएगी| लेकिन मंदिर के कपाट खोलने से पहले और उसके बाद महिलाओं के प्रवेश को लेकर काफी हंगामा हुआ|
सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद 10 से 50 साल की उम्र वाली कोई भी महिला भगवान अय्यप्पा के दर्शन करने में कामयाब नहीं हो सकी| सैकड़ों की तादाद में महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की तो वहां मौजूद लोगों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, इस दौरान काफी मारपीट और हिंसा भी हुई| प्रदर्शनकारियों ने श्रद्धालुओं के साथ-साथ पत्रकारों को भी निशाना बनाया| इसके साथ ही मंदिर की तरफ जाने वाले रास्तों को प्रदर्शनकारियों ने रोक दिया और मंदिर में प्रवेश की इच्छुक महिलाओं को बीच रास्ते से ही वापस भेज दिया गया|
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में प्रदर्शन कर रहे श्रद्धालुओं के साथ बुधवार को निलक्कल में झड़प होने के बाद पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा| श्रद्धालुओं के संगठन सबरीमाला संरक्षण समिति ने निलक्कल में अय्यप्पा स्वामी के भक्तों पर हुए पुलिस लाठीचार्ज के खिलाफ हड़ताल का आवाहन किया| मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दिए जाने के विरोध में अनेक हिंदू संगठनों ने भी गुरुवार को केरल बंद काआवाहन किया| कई राजनीतिक दलों ने इस बंद का समर्थन किया| पुलिस ने प्रदर्शनकारियों और अहिंसा पर लगाम लगाने के लिए पम्बा और सनी धर्म सहित चार जगहों पर धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी|
सुप्रीम कोर्ट के 28 सितंबर के आदेश के बाद जब बुधवार को मंदिर का कपाट खोला तो पूरे विधि-विधान से पुजारियों ने भगवान अयप्पा की पूजा अर्चना की साथ हजारों भक्तों ने कतार बद्ध होकर भगवान अयप्पा को भोग लगाया ले,किन इस दौरान किसी भी महिला को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया|
केरला सरकार का कहना है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और मंदिर में दर्शन से किसी को भी रोका नहीं जाएगा साथ ही रोकने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी|
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला
केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम से करीब 175 किलोमीटर दूर पश्चिमी घाट की पर्वत श्रृंखलाओं के घने जंगल में 100 मीटर की ऊंचाई पर सबरीमाला मंदिर स्थित है| यहां भगवान अयप्पा का मंदिर है मंदिर अट्ठारह पहाड़ियों के बीच स्थित है| सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के जरिए मंदिर में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश का रास्ता साफ कर दिया| तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सबरीमाला के अय्यप्पा स्वामी मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी| संविधान पीठ ने 4-1 से यह फैसला सुनाया था| संविधान पीठ ने 8 दिनों तक सुनवाई करने के उपरांत इस साल 1 अगस्त को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था|
- कोर्ट ने आदेश में मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को लैंगिक आधार पर भेदभाव वाला करार दिया|
- कोर्ट इस परिपाटी को हिंदू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन बताया, कोर्ट ने कहा कि सभी श्रद्धालुओं को पूजा का अधिकार है|
- दो तरफा नजरिए से महिला की गरिमा को ठेस पहुंचती है, सालों से चले आ रहे पितृसत्तात्मक नियम अब बदले जाने चाहिए|
- पीठ ने कहा कि महिलाओं की समाज में बराबरी की हिस्सेदारी है हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय है और महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से रोका नहीं जा सकता है|
- अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को किसी भी तरह से पुरुषों से कम नहीं माना जा सकता है|
सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक अधिकारों का हवाला देते हुए कहा कि महिलाओं को पूजा से रोकना उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन है| कोर्ट ने साफ किया कि 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं देना संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन है| अनुच्छेद 25 के जरिए देश के हर नागरिक को किसी भी धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की आजादी है|
अनुच्छेद 25 व्यक्तिगत रूप से धर्म की स्वतंत्रता प्रदान करता है वही अनुच्छेद 26 धार्मिक समूह के रूप में अपने धर्म से संबंधित कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता देता है| कोर्ट ने कहा कि भगवान अय्यप्पा के श्रद्धालु हिंदू है और कुछ लोग एक अलग धार्मिक प्रभुत्व बनाने की कोशिश कर महिलाओं को मंदिर में जाने से रोकने की कोशिश नहीं कर सकते है|
कोर्ट ने कहा किसी भी शारीरिक और जैविक कारण को रोक का आधार नहीं बनाया जा सकता है| सबरीमाला मंदिर की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों को जरूरी धार्मिक क्रियाकलाप के रूप में नहीं जा सकती है|
धर्म की नजर से सब बराबर होते हैं धर्म के नाम पर पुरुषवादी सोच ठीक नहीं है और उम्र के आधार पर मंदिर में प्रवेश धर्म का अभिन्न हिस्सा भी नहीं है| संविधान पीठ ने कहा कि संविधान के मुताबिक हर किसी को बिना किसी भेदभाव के मंदिर में पूजा करने की अनुमति मिलनी चाहिए, कोटा के लिए 1965 में बने हिंदू पूजा स्थल प्रवेश के अधिकार कानून के नियम को भी निरस्त कर दिया|
जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अलग राय
- गहरे धार्मिक मुद्दों को कोर्ट को नहीं छेड़ना चाहिए|
- देश में धर्मनिरपेक्ष माहौल बना रहे, इसके लिए जरूरी है कि धार्मिक रीति-रिवाजों में कोर्ट दखल नहीं हो|
- ‘सति प्रथा’ जैसी सामाजिक बुराइयों की बात हो दख़ल सही है किन्तु धार्मिक परंपराएं कैसे निभाई जाएं, इसमें कोर्ट का हस्तक्षेप नहीं हो|
- उन्होंने कहा ये फैसला सिर्फ सबरीमाला तक ही सीमित नहीं रहेगा, फैसले से दूसरे पूजा स्थलों पर भी दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेंगे|
सबरीमाला से जुड़ा विवाद का इतिहास
सबरीमाला से जुड़ा विवाद सुप्रीम कोर्ट में अगस्त 2006 में पहुंचा था याचिकाकर्ता यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने सबरीमाला मंदिर में पिछले 800 साल से 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को चुनौती दी थी| याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के ट्रस्ट त्रावणकोर देवासम बोर्ड से महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं देने पर जवाब मांगा था| बोर्ड ने अपने जवाब में कहा था कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे और इस वजह से मंदिर में वही लड़की और महिलाएं प्रवेश कर सकती है जिनका मासिक धर्म शुरू ना हुआ हो या फिर खत्म हो चुका हो|
13 अक्टूबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की खंडपीठ ने इस पूरे मामले को पांच जजों की संविधान पीठ के हवाले कर दिया था| संविधान पीठ को अनुच्छेद 14 में दिए गए समानता के अधिकार, अनुच्छेद 15 धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव रोकने, अनुच्छेद 17 में छुआछूत को समाप्त करने जैसे सवालों सहित चार मुद्दों पर सुनवाई करनी थी|
सबरीमाला विवाद पर केरल सरकार का रुख़
सबरीमाला में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश के मुद्दों पर केरल सरकार का रुख बदलता रहा है| नवंबर 2007 में केरल की वाम मोर्चे वाली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया था लेकिन फरवरी 2016 में केरल की कांग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ सरकार ने रुख बदलते हुए पुरानी मान्यताओं का समर्थन किया था| नवंबर 2016 में एनडीए सरकार ने ताजा हलफनामे में मंदिर में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया है| हाल ही में केरल के मुख्यमंत्री ने साफ किया है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में 28 सितंबर के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करेगी|
सबरीमाला मंदिर के दरवाज़े खोलने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मंदिर बोर्ड और राज्य सरकार के सामने कई चुनौतियां आ खड़ी हुई है| तीर्थ यात्रियों के लिए रास्ता और मंदिर में सुरक्षा मुहैया कराने के लिए सुविधाओं को बढ़ाने की जरूरत है|
मंदिर प्रबंधन के लिए भक्तों की संख्या में विशेष रूप से महिलाओं की संख्या में वृद्धि को देखते हुए पर्याप्त आधारभूत संरचना बनाना सबसे बड़ी चुनौती है| मंदिर बोर्ड ने दलील दी है कि सबरीमाला मंदिर देश के सबसे ज्यादा भीड़ वाले मंदिरों में से एक है|
मंदिर प्रबंधन ने पुरुषों के साथ महिलाओं को अनुमति देने पर महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था को संभालने में असमर्थता जाहिर की है|
अगस्त में आई बाढ़ से पम्बा में कई संरचनाएं क्षतिग्रस्त हो गई है| यही से मंदिर के लिए चढ़ाई शुरू होती है| बाढ़ से यहां के अस्थाई शिविर को नुकसान पहुंचा है जिसमें एक वक़्त में 5000 श्रद्धालु रह सकते थे| इसके अलावा तीन बहू मंजिलें शौचालय ब्लॉक, बाथरूम और पंबा नदी पर बने तीन पुलों को भी नुकसान पहुंचा है|
केरल जल प्राधिकरण का एक पंप हाउस भी रेत के भारी जमाव में दब चुका है| नदी के किनारों को भी क्षति पहुंची है जिससे पीने के पानी की आपूर्ति पर भी काफी असर पड़ा है| सारी चुनौतियां ऐसी है जल्दी निपटा जा सकता है लेकिन पर्यावरण संगठनों में लंबे समय से उपेक्षित कई मुद्दों पर तत्काल कार्रवाई की जरूरत पर जोर दिया है| विशेषज्ञों का कहना है कि पहाड़ी पर जोर दिया है कि साला तीर्थ यात्रा के लिए तैयारियां शुरू होनी चाहिए
राज्य में भीषण बाढ़ के बाद केरल सरकार ने घोषणा की है कि पम्बा नदी के किनारे स्थाई संरचनाओं को बनाने और कंस्ट्रक्शन की अनुमति नहीं दी जाएगी लेकिन अगर महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाती है तो नए रास्ते बनाने होंगे| तीर्थयात्रियों और सुरक्षाकर्मियों के लिए ठहरने और आराम करने के लिए कमरे की व्यवस्था करनी होगी हालांकि त्रावणकोर देवास बाम बोर्ड ने साफ किया है कि वह पंबा के तट पर किसी भी तरह का स्थाई निर्माण नहीं करेगा|
तीर्थ यात्रा के मौसम में है अधिकारियों ने मुख्य ट्रांजिट कैंप में करीब 1000 शौचालयों को बनाने की योजना बनाई है लेकिन ट्रांजिट कैंप में महिलाओं के लिए और अधिक सुविधाओं का विकास करना होगा जो फिलहाल संभव नहीं है|
नवंबर से जनवरी तक के दौरान मंदिर के लिए कतार आधार शिविर पम्बा से शुरू हो जाती है| यह मंदिर से 5 किलोमीटर दूर है इससे मंदिर तक पहुंचने में आमतौर पर 8 से 10 घंटे लग जाते हैं| मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पदों के लिए 75 भक्तों को सिर्फ 1 मिनट का समय लगता है| महिलाओं की उपस्थिति से अलग अलग समय में अलग-अलग लाइनों की जरूरत होगी| पहाड़ी पर खड़ी चढ़ाई के वजह से दम घुटने से 50 लोगों की मौत हो जाती है| भक्तों का कहना है कि मंदिर के रास्ते में बड़ी संख्या में तैनात प्रशिक्षित पुलिसकर्मी भगदड़ और दूसरी घटनाओं से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| अब बड़ी संख्या में महिलाओं के मंदिर में जाने से महिला अधिकारियों की पर्याप्त संख्या में तैनाती करनी पड़ेगी|
केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर सबरीमाला पहाड़ियों पर स्थित भगवान सबरीमाला मंदिर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है| भगवान अयप्पा का दर्शन करने के लिए जहां दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु आते हैं| सुप्रीम कोर्ट ने जब से सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध हटाया है तब से यह मंदिर चर्चा का विषय बना हुआ है| मंदिर का इतिहास काफी गौरवशाली है और लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक है आइए जानते हैं सबरीमाला मंदिर के इतिहास के बारे में|
सबरीमाला मंदिर और भगवान अयप्पा का इतिहास
ऐसी मान्यता है कि भगवान अय्यप्पा के पिता शिव और माता मोहिनी है| पौराणिक कथाओं के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान शिव भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित हो गए और इसी के प्रभाव से एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसे उन्होंने पंबा नदी के तट पर छोड़ दिया था| बाद में पन्द्लम के राजा राजशेखर ने बच्चे को मणिकंदन के रूप में पाला लेकिन भगवान मणिकंदन को यह सब अच्छा नहीं लगा और वह महल छोड़कर चले गए| उनकी याद में राजा ने सबरीमाला नामक पहाड़ी के ऊपर एक मंदिर बनवाया जहां मणिकंदनने ज्ञान प्राप्त किया और भगवन अयप्पा बन गये| भगवान शिव और विष्णु से उत्पन्न होने के कारण उनको हरिहरपुत्र कहा जाता है| इसके अलावा भगवान अयप्पा को अयाप्पन, शास्ता जैसे नामों से भी जाना जाता है|
ऐसी मान्यता है कि भगवान अयप्पा अविवाहित है यह विश्वास अय्यप्पा के एक महिला राक्षस मलिकापुरथम्मा के साथ एक किवदंती से जुड़ा हुआ है जो उनके निवास के करीब रहती थी|अयप्पा ने मलिकापुरथम्मा को युद्ध में हराकर उसे राक्षस योनी से मुक्त कर दिया था| इसके बाद मलिकापुरथम्मा उनसे शादी करना चाहती थी| अय्यप्पा ने इस प्रस्ताव को नकार दिया क्योंकि वह बाल ब्रहमचारी थे लेकिन उन्होंने यह भी शर्त रखीं कि जिस साल कोई भी नया श्रद्धालु उनके दर्शन करने नहीं आएगा तभी वे उससे शादी करेंगे| तभी से अय्यप्पा के सम्मान में किसी महिला को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता और माना जाता है कि मलिकापुरथम्मा अभी भी उनका इन्तेज़ार कर रहीं है|
सबरीमाला का नाम रामायण की शबरी के नाम पर पड़ा है वही शबरी जिसने भगवान राम को जूठे फल खिलाए थे और भगवन राम ने उसे नवधा भक्ति के उपदेश दिए थे| इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में एक ज्योति दिखती है इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनिया भर से करोरों भक्त हर साल आते हैं| माना जाता है कि जब-जब यह रोशनी दिखाई देती है इसके साथ शौर भी सुनाई देता है भक्त मानते हैं कि यह देवज्योति है और भगवान इसे जलाते हैं ऐसी मान्यता है कि अयप्पा ने शिव और वैष्णव के बीच एकता कायम थी|
सबरीमाला मंदिर
- सबरीमाला मंदिर पश्चिमी घाटी में सह्याद्रि पहाड़ियों के बीच स्तिथ है|
- घने जंगलों, ऊंची पहाड़ियों और खतरनाक जानवरों को पार करके पहुंचना होता है।
- कठिन हालात होने के कारण अधिक दिनों तक नहीं ठहरा जा सकता है साथ ही मंदिर में आने का एक खास मौसम और समय निर्धारित किया गया है|
- श्रद्धालुओं को 41 दिनों का कठिन वृहताम का पालन करना होता है।
- मंदिर नौ सौ चौदह मीटर की ऊंचाई पर स्तिथ है|
- केवल पैदल मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
- मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पावन सीढ़ियों को पार करना पड़ता है। पहली पांच सीढ़ियों को मनुष्य की पांच इन्द्रियों से जोड़ा गया हैं।उसके बाद की 8
- सीढ़ियों को मानवीय भावनाओं से जोड़ा जाता है। उसके बाद की तीन सीढ़ियों को मानवीय गुण से जोड़ा जाता है। आखिरी दो सीढ़ियों को ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक माना जाता है।