यूरोपीय संघ से अलग होने को के लिए अगले साल 29 मार्च तक मुमकिन बनाने के लिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थेरेसा मे जी तोड़ कोशिश में जुटी है| हालांकि उनके लिए रास्ता आसान नहीं है अब विपक्षी लेबर पार्टी ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है| यूरोपीय संघ के नेताओं ने मार्च 2019 में बिना किसी समझौते के ब्रिटेन को संघ से बाहर करने की अपनी योजना पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है| यूरोपीय आयोग इस संबंध में अपनी योजना को 19 दिसम्बर को सार्वजनिक करेगा|
ब्रेक्जिट को लेकर थेरेसा मे के सामने क्या चुनौतिया है?
यूनियन से अलग होने यानी ब्रेक्जिट पर ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है उन्हें एक साथ कई चुनौतियों का मुकाबला करना पड़ रहा है| अपनी ही पार्टी में अविश्वास मत की चुनौती से निपटने में कामयाबी के बाद अब विपक्ष ने थेरेसा मे के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है| विपक्ष यानी लेबर पार्टी के नेता कोरबिन ने प्रधानमंत्री के खिलाफ संसद में गैर बाध्यकारी अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है| विपक्षी पार्टी रूप तब सामने आया जब 11 दिसंबर की प्रस्तावित मतदान को स्थगित कर दिया| उनका कहना है कि अर्थपूर्ण मतदान के लिए हाउस ऑफ कॉमंस को अनुमति देने में असफल रहीं है और प्रधानमंत्री में सदन का कोई विश्वास नहीं है|
इससे पहले ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने विपक्ष के साथ नहीं मिलने पर ब्रेक्जिट पर जनवरी तक के लिए वोटिंग टाल दी| ब्रेक्जिट को लेकर पिछले हफ्ते डाला गया संसदीय मतदान अब जनवरी में होगा| ब्रेक्जिट समझौते पर नई साल में 7 जनवरी से चर्चा शुरू की जाएगी, जबकि इसके अगले सप्ताह यानी 14 जनवरी से शुरू होने वाले सप्ताह में हाउस ऑफ कॉमंस में मतदान कराया जाएगा|
ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने यूरोपीय संघ की सदस्यता पर एक और जनमत संग्रह कराने का प्रस्ताव को खारिज कर दिया है| उन्होंने कहा कि यह उन ब्रिटिश लोगों का भरोसा तोड़ देगा जिन्होंने 2016 में यूरोपीय संघ छोड़ने और ब्रिटिश राजनीति की अखंडता को क्षति से बचाने के पक्ष में वोट डाला था| ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे के लिए पिछला हफ्ता भी चुनौतियों से भरा रहा| 12 दिसंबर का दिन फिर समय के लिए चुनौती लेकर आया था जिसे वह हर हाल में टालना चाहती थी| उन्हीं की कंजरवेटिव पार्टी उनके नेतृत्व के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आई थी| थेरेसा मे कहा कि वह पूरी ताकत से प्रस्ताव का मुकाबला करेंगी| आखिरकार वोटिंग में उनके खिलाफ 117 मत पड़े जबकि उनके समर्थन 200 मत पड़े इसके बाद थेरेसा में ने राहत की सांस ली|
थेरेसा में के लिए कुछ और चुनौतियां पहले से ही तैयार थी| उन्होंने यूरोपियन यूनियन के साथ मिलकर तैयार किए गए ब्रेक्जिट मोसोदे को संसद में पास कराने की भरपूर कोशिश लेकिंग बहस के कारण थेरेसा मे को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा|
स्तिथि से यह स्पष्ट हो गया कि अगर ब्रेक्जिट मसौदे पर वोटिंग की जाती है तो थेरेसा में की हार पक्की है| स्थिति को देखते हुए उन्होंने वोटिंग को जनवरी तक के लिए टाल दिया और तुरंत यूरोपियन यूनियन के सदस्यों से बात करने निकल पड़ी| इस दौरान उन्होंने नीदरलैंड के प्रधानमंत्री, जर्मनी की चांसलर, एंजेला मर्केल और यूरोपीय संघ के अध्यक्ष से मुलाकात की लेकिन यूरोपीय संघ के अध्यक्ष ने पहले से तैयार मसौदे में फेरबदल से पूरी तरह से इंकार कर दिया|
अब ब्रिटेन में ब्रेक्जिट के समर्थक और विरोधी दोनों ही थेरेसा मे के विरोध में खड़े हैं| ऐसे में यूरोपियन यूनियन से पिछले हफ्ते मसौदे में स्पष्टीकरण से ज्यादा कुछ नहीं मिला| अब उनके पास रास्ते बहुत ही कम और कठिन है| पहला कि वह संसद को ब्रेक्जिट मसौदे के पक्ष में राजी कर ले और दूसरा बिना किसी समझौते की वह मार्च 2019 में यूरोपीय संघ से बाहर हो जाएं| यह दोनों ही विकल्प फिलहाल काफी मुश्किल नजर आ रहे हैं|
ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से अलग होना यानि ब्रेक्जिट| आख़िर ऐसा क्या कारण था कि ब्रिटेन एक अच्छे खासे चले रहे संघ से अलग होना चाहता था| ब्रिटेन के लोगों को ऐसा क्या लगा कि उन्हें संघ से अलग हो जाना चाहिए|
क्यों बनानी पड़ी यूरोपीय संघ
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया दो भागों में बांट गई थी| ऐसे में यूरोप को अपनी पहचान और अपना हित सुरक्षित रखने के लिए अलग जगह बनानी थी| ऐसी परिस्थितियों के दौरान 1950 में बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, इटली, लक्जमबर्ग और नीदरलैंड ने यूरोपीय संघ की शुरुआत की थी| इस संघ के देश एक दूसरे कस्टम चार्ज नही करते थे अनाज के उत्पादन का आपस में बटवारा होता था| इस व्यवस्था से सभी सदस्य देशों ने तेज़ आर्थिक विकास किया| 1 जनवरी 1973 ब्रिटेन आईलैंड और डेनमार्क ने भी यूरोपीय संघ की सदस्ता ले ली| 1 जनवरी 1999 में इस समूह ने अपनी एक मुद्रा यूरो को भी अपना लिया| कुछ सालों तक तो इस समूह ने काफी अच्छी तरह से काम किया लेकिन सभी देशों की अर्थव्यवस्था एक सी नहीं थी नतीजा यह हुआ कि बिना किसी सीमा बंधनों के चलते अपेक्षाकृत गरीब देशों के लोग अमीर देशों में आने लगे| इसका सबसे बड़ा खामियाजा ब्रिटेन भुगत रहा था| ब्रिटिश लोगों में धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था, अपनी सामाजिक सोच और अपनी पहचान खो देने का डर समाने लगा| जिसके चलते वह ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की बात करने लगे और यहीं से शुरुआत हुई ब्रेक्जिट शब्द की|
पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ब्रेक्जिट के ख़िलाफ़
2015 के आम चुनाव में डेविड कैमरन ने यह वादा किया कि सत्ता में आने के बाद वह ब्रेक्जिट मुद्दे पर जनमत संग्रह कराएंगे| कंजरवेटिव पार्टी का दावा था कि 1973 में यूरोपीय संघ में ब्रिटेन के शामिल होने से ब्रिटेन का कोई फायदा नहीं हुआ| डेविड कैमरन ब्रेक्जिट के खिलाफ थे| और वह चाहते थे कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ का हिस्सा बना रहे आखिरकार बड़े पैमाने पर कोई जनमत संग्रह के बाद 23 जून 2016 को नतीजे आए तो चौतरफा हलचल मच गई फैसला हो चुका था कांटे की टक्कर में ब्रेक्जिट के पक्ष में ज्यादा वोट पड़ाइसके बाद डेविड कैमरन ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया |
ब्रेक्जिट को लेकर 2016 में जनमत संग्रह
- जनमत संग्रह में 3 करोड़ 35 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था|
- ‘रीमेन’ अभियान के पक्ष में 16,141,241 वोट पड़े थे|
- ‘लीव’ के पक्ष में 17,410,742 वोट पड़े थे|
- जनमत संग्रह में कुल 72.2% लोगों ने हिस्सा लिया था|
- ईयू में रहने के पक्ष में 48.1% लोग थे|
- ब्रेक्जिट यानि ईयू से बाहर जाने वाले के पक्ष में 51.9% लोग थे|
ब्रेक्जिट के लिए चेकर्स प्लान
- थेरेसा मे ने यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ मिलकर मसौदा तैयार किया गया|
- चेकर्स डील में 12 शर्ते शामिल है|
- नार्वे और आयरलैंड या नार्वे और ब्रिटेन के बीच कोई हार्ड बॉर्डर नहीं होगा|
- ब्रिटेन खुद की शर्तों पर व्यापार करने के लिए आज़ाद रहेगा|
- ईयू और ब्रिटेन के बीच इंडस्ट्रियल और कृषि सामानों के लिए मुक्त व्यापार होगा|
- नियम और कानून एक होंगे|
- समान कृषि नीति और समान मत्स्य नीति का त्याग किया जायेगा|
यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर हो जाने के फैसले से दुनिया भर में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं| भारत में भी इस पर कई तरह की राय सामने आ रही है देखते हैं कि ब्रेक्जिट यानी यूरोपीय संघ से ब्रिटेन की अलग होने से भारत पर इसका कितना और क्या असर पड़ेगा|
ब्रेक्जिट का भारत पर प्रभाव 2015-16 के आंकड़े के अनुसार
- भारत का ब्रिटेन को छोड़ बाकि ईयू के साथ व्यापार अधिशेष 60 करोड़ डॉलर
- ब्रिटेन के साथ ट्रेड सरप्लस 360 करोड़ डॉलर
- भारत-ब्रिटेन के बीच सालाना व्यापार 2017 में 18 अरब पौंड ।
- 2016 की तुलना में 15 प्रतिशत ज्यादा
- 2000 के बाद से ब्रिटेन ने भारत में 19 बिलियन पाउंड से ज्यादा का निवेश किया|
- डॉलर का वैल्यू बढ़ जायेगा जिससे भारत को तेल खरीदने के लिए ज्यादा रूपये चुकानी पड़ेगी|
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