इस पोस्ट में हम पढेंगे आख़िर क्यों चुनाव आयोग ने राज्यसभा और विधान परिषद के मतदान से नोटा अधिकार को हटा दिया है| साथ ही नोटा के खिलाफ़ याचिका दर्ज किसने करवाया था? हम एक भारत में नोटा के सफ़र पर भी डालेंगे और दुनिया में नोटा शुरुआत कब हुई थी यानि नोटा का इतिहास क्या है? यह भी जानेगे| दुनिया के कई देशों में नोटा के लिए अलग-अलग नामों का इस्तेमाल किया जाता है| किस देश में नोटा को किस नाम से जाना जाता है इसकी जानकारी सबसे निचे दी गई है| हम नोटा अधिकार के फायदे और नुकसान पर भी एक नज़र डालेंगे|
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार अब राज्यसभा और विधान परिषदों मतदान के मतपत्रों में नोटा यानि नन ऑफ द एबव का विकल्प को हटा दिया जायेगा| केंद्रीय चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के चुनाव आयोग को बैलेट पेपर से नोटा का विकल्प हटाने को कहा है|
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आइए जानते हैं आख़िर पूरा मामला क्या है?
21 अगस्त 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य सभा चुनाव में नोटा का इस्तेमाल नहीं होगा| सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि नोटा डिफेक्शन को बढ़ावा देगा और इससे भ्रष्टाचार के लिए दरवाजे खुलेंगे| सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि नोटा को सिर्फ प्रत्यक्ष चुनाव में ही लागू किया जाना चाहिए| कोर्ट ने कहा कि यह विकल्प अप्रत्यक्ष चुनाव जहां औसत प्रतिनिधित्व की बात होती है वहां लागू नहीं होगा| इसके साथ ही राज्यसभा चुनाव में नोटा लागू करने से एक मत के औसत मूल्यांकन की धारणा नष्ट होगी|
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि नोटा पहली नजर में लुहवाना लग सकता है लेकिन गंभीर जांच करने पर यह आधारहीन दिखता है क्योंकि इससे ऐसे चुनाव में मतदाता की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया है| इससे लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास होता है इसके साथ ही नोटा के प्रयोग से अप्रत्यक्ष चुनाव में समाहित चुनाव निष्पक्षता खत्म होती है वह भी तब जब की मतदाता के मत का मूल्य हो और वह मूल्य ट्रांस्फेरेब्ले हो| ऐसे में नोटा एक बाधा है|
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने यह फैसला सुनाया था| चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा:–
- राज्य सभा चुनाव पहले से ही उलझन भरे हैं ऐसे में चुनाव आयोग इन्हें और जटिल नहीं बनाए|
- जस्टिस दीपक मिश्रा ने यह भी कहा कि कानून किसी विधायक को नोटा के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देता लेकिन इस नोटिफिकेशन के जरिए चुनाव आयोग विधायक को वोट न डालने का अधिकार दे रहा है जबकि यह उसका संवैधानिक दायित्व है तो वह नोट का रास्ता इस्तेमाल नहीं कर सकता है|
- मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस पर संदेह है कि नोटा के जरिए किसी विधायक को उम्मीदवार के लिए वोट डालने से रोका जा सकता है |
- वही जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बैलेट बॉक्स में डालने से पहले कोई विधायक उसे क्यों दिखाएं|
किसने नोटा के खिलाफ़ याचिका दर्ज कराया ?
गुजरात कांग्रेस के नेता शैलेश मनु भाई परमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की अधिसूचना पर सवाल उठाया और कहा कि नोटा सीधे चुनाव में सामान्य मतदाताओं के इस्तेमाल के लिए बनाया गया है |
- नोटा की शुरुआत इस लिए की गई थी कि प्रत्येक के चुनाव में कोई व्यक्ति वोटर के तौर पर इस विकल्प का इस्तेमाल कर सकें|
- शैलेश मनु भाई परमार पिछले राज्यसभा चुनाव में गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक थे| उन्होंने मत पत्रों में नोटा के विकल्प की इजाजत देने वाली आयोग की अधिसूचना को चुनौती दी थी|
- इस मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने परमार की याचिका का समर्थन किया था| केंद्र सरकार ने कहा था कि नोटा का इस्तेमाल राज्यसभा चुनाव के दौरान नहीं किया जाना चाहिए|
- सरकार का कहना था कि नोटा का इस्तेमाल होगा जहां “प्रतिनिधि जनता के जरिए सीधे चुने जाते हैं लेकिन राज्यसभा में इसका इस्तेमाल नहीं हो सकता” क्योंकि राज्यसभा के प्रतिनिधि प्रत्यक्ष तौर पर नहीं चुने जाते है|
- इससे पहले चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर के कहा था कि राज्यसभा चुनाव में नोटा का प्रयोग सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक है और यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही चुनाव पर लागू होता है|
- चुनाव आयोग ने कहा कि राज्यसभा चुनाव में नोटा का इस्तेमाल अगर शुरू नहीं करते तो यह अदालत के आदेश की अवहेलना का मामला बन जाता|
- सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में नोटा के विकल्प को अनिवार्य करने का आदेश दिया था और उसके बाद जनवरी 2014 नोट का प्रवधान रखने सम्बन्धी अधिसूचना जारी की गई थी|
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जिस तरह हर मतदाता को वोट डालने का अधिकार है उसी तरह से किसी को भी वोट ना देने का भी अधिकार है| कोर्ट ने कहा था कि यह आदेश सभी चुनाव को लेकर है यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह के चुनाव पर लागू होगा|
- अगर कोई वोटर या विधायक राज्यसभा चुनाव में पार्टी के निर्देशों के खिलाफ जाकर किसी उम्मीदवार को वोट देता है या नोटा का इस्तेमाल करता है तो उसे विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है वह विधायक रहेगा और उसका वोट भी वैलिड माना जाएगा लेकिन पार्टी उसके खिलाफ अनुशासन तोड़ने की कार्रवाई कर सकती है जिसमें पार्टी से निकालना भी शामिल है|
एक नजर डालते हैं भारत में नोटा के सफ़र पर
भारत में नोटा की दुनिया में 2013 में कदम रखा था| शुरुआत में राजनीतिक दलों ने इसका काफी विरोध किया था| लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद यह साफ हो गया कि मनपसंद उम्मीदवार की गैरमौजूदगी में आम लोगों के पास अपनी राय जाहिर करने का अधिकार भी उनका चुनावी अधिकार होना चाहिए|
27 सितंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट में भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस पी सदाशिवम की अगुवाई वाली बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि लोकतंत्र दरअसल चुनाव का ही नाम है| इसलिए मतदाताओं को नकारात्मक मतदान का भी पूरा अधिकार है और उन्हें यह अधिकार मिलेगा| नकारात्मक मतदान की यही अवधारणा नोटा की है|
- नोटा यानि मतदाताओं को मिला वह अधिकार जिसके जरिए बैलेट पेपर मशीन में दर्ज तमाम नामों को खारिज कर अपना रुख स्पष्ट कर सकते हैं| इसका सीधा सा मतलब यह है कि चुनाव में खड़े उमीदवारों मतदाता किसी को भी पसंद नहीं करता है और नोट बटन दबाकर अपना रुख सरकार के सामने रख सकता है|
- 2009 में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने से जुड़ी अपनी मंशा सामने रखी थी| बाद में नागरिक अधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने भी नोटा के समर्थन में एक जनहित याचिका दायर किया था| याचिका पर सुनवाई करते हुए 2013 में कोर्ट ने मतदाताओं को नोटा का विकल्प देने का निर्णय किया था|
- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए भारत निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में “इनमें से कोई नहीं यानी नोटा” का बटन का विकल्प उपलब्ध कराने के निर्देश दिया था| इस तरह भारत नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने वाला विश्व का चौदहवा देश बन गया|
- चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि नोटा के मत गिने तो जाएंगे पर इसे रद्द मतों के की तरह गिने जायेंगे इसका असर चुनाव के नतीजों नहीं पड़ेगा|
- नोटा 2013 में पहली बार उस वक्त हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपनाया गया था| उस वक़्त छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और मध्यप्रदेश के साथ ही दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में पहली बार लोगों को यह विकल्प दिया गया था कि वह चुनाव में खड़े सभी उम्मीदवारों को ख़ारिज कर सकें|
- इन सभी राज्यों में 1.85 फीसदी वोट नोटा पाए गए थे हालांकि 2014 में हुए 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव में नोटा का प्रतिशत घटकर 0.95 फीसदी रह गया था| हालांकि 2015 में दिल्ली और बिहार में हुए चुनाव में यह फिर बढ़कर 2.0 फीसदी हो गया था|
- नोटा की शुरुआत से पहले कई राजनीतिक दलों ने इसका यह कहकर विरोध किया था कि इसके आने से मतदाताओं में भ्रम की स्थिति पैदा होगी| लेकिन कोर्ट ने इसे लोकतंत्र के लिए जरूरी बता कर इसे लागू करने का निर्देश दिया था|
- नोटा के आने के बाद से लेकर राजनीतिक दलों में कई बार चिंता और मनन स्थिति देखने को मिला क्योंकि 2013 से फरवरी 2017 के बीच में मतदान की कुल सीटों में से 261 विधानसभा और 24 लोकसभा सीटों पर नोटा वोट विजय से ज्यादा थी| 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में भी कुल 21 सीटों पर सबसे ज्यादा वोट पाने वाले पहले दो प्रत्याशियों के बीच का अंतर नोटा वोटों से कम था| यही वजह है कि राजनीतिक दलों में नोटा वोटों को लेकर संजीदगी और गंभीरता से ज्यादा दिख रही है|
नोटा के पक्ष और विपक्ष(तर्क)
प्रत्यक्ष चुनाव में नोटा की अनिवार्यता खत्म करने के बाद, नोटा की प्रासंगिकता के पक्ष और विपक्ष में कई सवाल जवाब हो रहे हैं आइए जानते हैं नोटा के पक्ष और विपक्ष में कौन-कौन से तर्क दिए जा रहे हैं|
पक्ष में
- दरअसल जोलोग नोटा के मौजूदा स्वरूप से असंतुष्ट हैं उनका तर्क यह है कि इससे मतदाताओं को चुनाव में खड़े प्रत्याशियों को खारिज करने का हक नहीं मिलता है |इस प्रक्रिया में भी पहले की ही तरह सबसे ज्यादा वोट पाने वाला प्रत्याशी विजई घोषित हो जाता है या नहीं यह सिर्फ किसी को वोट नहीं देने का अधिकार है जिसका चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ता है|
- ऐसे लोगों का तर्क यह है कि नोटा का अधिकार तभी कारगर सिद्ध हो सकता है जब लोगो को भी प्रत्याशियों को सिरे से खारिज करने का यानी राइट टू रिजेक्ट का हक मिल जाए| वैसे देश के कई हिस्सों के स्थानीय निकाय स्तर पर राइट टू रिकॉल कानून लागू है, इसको अपने चुने हुए जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार होता है लेकिन किसी भी तरह के कानून को लेकर किसी भी राजनीतिक दल ने कोई पहल नहीं की है|
- चुने हुए नेता को वापस बुलाने का अधिकार के साथ-साथ चुनाव के प्रत्याशी को खारिज करने का प्रावधान होना जरूरी है ऐसे लोग नोटा की जगह राइट टू रिजेक्ट दिए जाने की वकालत कर रहे हैं|
विपक्ष में
- दूसरी तरफ नोटा के समर्थन में दलित यह है कि राजनीतिक दल अब नोटा को लेकर संजीदा हो रहे हैं| नोटा वोटों की तादाद भले ही कम हो लेकिन इसे चुनाव में धनबल और बाहुबल के बढ़ते प्रभाव से त्रस्त आम मतदाता के आक्रोश की हत्यार के तौर पर देखा जा रहा है| राजनीतिक दलों के मंसूबे और वादाखिलाफी के खिलाफ कई नागरिक मंच और आंदोलनकारी आगामी चुनाव में नोटा का विकल्प चुनने की चुनौती देते रहे हैं|
- ऐसा माना जाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना फैसला देते हुए इस बात को भी ध्यान में रखा था कि जनता के पास यदि किसी को भी नहीं चुनने का अधिकार होगा तो राजनीतिक दल, दागदार और खराब छवि वाले उम्मीदवारों को चुनाव में टिकट देने से बचेंगे| यह लोकतंत्र में साफ-सुथरे चुनाव की दिशा में एक बड़ा बदलाव भी माना जा रहा है|
आइए जानते हैं नोटा की शुरुआत कब हुई थी|
- नोटा का सबसे पहले इस्तेमाल अमेरिका में हुआ मतपत्रों में नोटा का पहली बार प्रयोग साल 1976 में अमेरिका के कैलिफोर्निया में इस्ला विस्टा म्यूनिविस्टा एडवाइजरी काउंसिल के चुनाव में हुआ था| उसके बाद अन्य देशों ने भी धीरे-धीरे इस विकल्प को अपने देश में लागू करना शुरू कर दिया|
- नोटा का प्रयोग कोलंबिया, यूक्रेन, ब्राजील. बांग्लादेश, स्पेन, फ्रांस, बेल्जियम और यूनान समेत कई देशों में लागू है| दुनिया के कई देशों में 50 फ़ीसदी से ज्यादा मत पर ही जीत का प्रावधान है| ऐसे में अगर वहां 50 से ज्यादा नोटा वोटों की संख्या हो जाती है तो चुनाव को रद्द कर फिर से चुनाव कराया जाता है| ऐसे में नोटा का महत्व काफी बढ़ जाता है|
- रूस में साल 2006 तक मतदाताओं के नोटा का विकल्प उपलब्ध था बाद में इसको हटा दिया गया|
दुनिया के कई देशों में नोटा के लिए अलग-अलग नामों का इस्तेमाल किया जाता है|
- भारत में नोटा का मतलब नन ऑफ दी एबव
- अमेरिका में नोटा का मतलब नन ऑफ दीज कैंडिडेट
- यूक्रेन में अगेंस्ट ऑल
- स्पेन में ब्लैंक बैलेट
- रूस में नोटा का मतलब अगेंस्ट ऑल
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