वर्तमान समय में दुनिया में भारत न सिर्फ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के तौर पर जाना जाता है बल्कि हम ऐसी बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था के भी प्रतीक हैं जहां लोकतंत्र वास्तविक रूप में जीवंत है और सशक्त ढंग से चल भी रहा है लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने में हमने कई चुनौतियों को पार कर के इस मुकाम को पाया हैं|
- शाह जाँच आयोग की रिपोर्ट
- आपातकाल पर भारतीय जनता पार्टी
- आपातकाल का इतिहास
- आपातकाल लगाने का कारण – इंदिरा गांधी
- आपातकाल का लगाने का कारण
- आपातकाल लगाने से इंदिरा गांधी को फायदा
- आपतकाल से फ़ायदा
- आपातकाल के समय विपक्ष की हालत
- संविधान संशोधन का दौर – आपातकाल
- आपात काल के समय -प्रेस और फिल्म जगल
- आपातकाल के समय आर्थिक स्तिथि
- परिवार नियोजन और सुंदरीकरण
- भारतीय इतिहास का काला दिन
- मिसा और डिफेंस ऑफ इंडिया रूल
- अनुछेद 352 से 360 -आपातकाल
- आपातकाल कितनी बार लग चूका हैं
- आपातकाल के बाद भारतीय राजनीति
शाह जाँच आयोग की रिपोर्ट
जनता पार्टी की सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व में रहे मुख्य न्यायाधीश श्री जे.सो. शाह की अध्यक्षता में एक विशेष आयोग गठन किया गया । शाह जाँच आयोग का गठन 25 जून 1975 के दिन घोषित आपातकाल के दौरान की गई तिचार और कदाचार कार्रवाई तथा सत्ता के दुरुपयोग के विभिन्न आरोपों के विविध पहलुओं को जाँच जनता के सामने लाने के लिए किया गया था। आयोग ने विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों को जाँच को और हजारों गवाहों के बयान दर्ज किए। गवाहों में इंदिरा गाँधी भी शामिल थीं। आयोग के सामने उपस्थित हुई, लेकिन उन्होंने आयोग के सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया। भारत सरकार ने आयोग द्वारा प्रस्तुत दो अंतरिम रिपोर्टों और तीसरी तथा अंतिम रिपोर्ट की सिफारिशों, पर्यवेक्षणों और निष्कर्षों को स्वीकार किया। वह रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में भी विचार के लिए रखी गई।
आपातकाल पर भारतीय जनता पार्टी
25 जून 1975 का आपातकाल हमारे लोकतंत्र संवैधानिक ढांचे के लिए एक ऐसी ही चुनौती बनकर सामने आया था | इस दिन को आज हमारे लोकतंत्र के लिए काले अध्याय के तौर पर याद किया जाता है लेकिन आपातकाल याद रखना भी बहुत जरूरी है ताकि हमें यह मालूम रहे कि कैसे संविधान को हथियार बनाकर इसे जनता के खिलाफ़ इस्तेमाल किया जा सकता हैं|
इस वर्ष आपातकाल को याद करते हुए केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने अपनी फेसबुक पोस्ट में उस दौर के चित्रण करने की पूरी कोशिश की है अरुण जेटली जो उस दौरान जेल भी गए थे| वह लिखते हैं कि उस दौरान मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था ,व्यक्तिगत आजादी और बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार भी छीन लिया गया ,लोगों को सिर्फ वही खबरें मिली जो सरकार उन्हें देना चाहती थी और पूरे देश में विपक्षी दल के नेताओं कार्यकर्ताओं पत्रकारों और शिक्षाविदों को हिरासत में ले लिया गया था|
आपातकाल के इस दौर ने निष्पक्ष पत्रकारिता की भी खूब परीक्षा ली आज के पत्रकारों के लिए भी आपातकाल किसी सबक से कम नहीं हैं| अपने एक लेख में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने पत्रकारिता और आपातकाल के संबंधों का कम शब्दों में बहुत ही खूब जिक्र किया है उन्होंने लिखा है कि आपातकाल के उन दिनों में प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया ने भी देश के आम नागरिकों का साथ देने का ऐतिहासिक अवसर गंवा दिया| तब की तानाशाह सरकार के आगे उन्होंने भी घुटने टेक दिए थे रामनाथ गोयनका का इंडियन एक्सप्रेस द स्टेट्समैन और मींस इन जैसे कुछ ही मीडिया संस्थान तब अपवादों में से थे जिन्होंने सरकार की नीतियों का विरोध किया था|
लालकृष्ण आडवाणी ने इसका प्रभावशाली रूप से वर्णन करते हुए कहा कि मीडिया तो रेंगने लगी जबकि उन्हें तो बस झुकने को कहा गया था| ज्यादातर मीडिया संस्थानों के झुक जाने के बावजूद जनता की आवाज नहीं दब पाई और आज भी उन पत्रकारों और मीडिया समूह को सम्मान के साथ याद किया जाता है जिन्होंने सत्ता के आगे घुटने टेकने के बजाय सत्ता से टकराने का साहस दिखाया पत्रकारिता का यह स्वरूप हर दौर के लिए एक मिसाल के तौर पर भी याद किया जाता रहेगा|
आपातकाल का इतिहास
भारत में 25 जून 1975 की रात को भारत आपातकाल लगाया गया और इस दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को छीन लिया गया कर और भारत को एक बड़े जेल में बदल दिया गया|
26 जून 1975 की सुबह ऑल इंडिया रेडियो ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज में एक संदेश प्रसारित किया जिससे पूरे देश ने सुना इंदिरा गांधी ने कहा ” भाइयों और बहनों राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है लेकिन इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है” इस घोषणा के साथ ही देश में आपातकाल का दौर शुरू हुआ इसका प्रावधान देश में आंतरिक अशांति से निपटने के लिए भारतीय संविधान की धारा 352 के तहत किया गया है लोगों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए देश भर में प्रेस सेंसरशिप लगा दी गई थी|
आपातकाल लगाने का कारण – इंदिरा गांधी
लोकतंत्र के नाम पर खुद लोकतंत्र को राह रोकने की कोशिश की जा रहो है। वैधानिक रूप से निर्वाचित सरकार को काम नहीं करने दिया जा रहा। आंदोलनों से माहौल सरगर्म है और इसके नतीजतन हिंसक घटनाएँ हो रही हैं |एक आदमी तो इस हद तक आगे यड़ गया है कि वह हमारी सेना को विद्रोह और पुलिस को बगावत के लिए उकसा रहा है। विघटनकारी ताकतों का खुला खेल जारी है और सांप्रदायिक उन्माद को हवा दी जा रही है, जिससे हमारी एकता पर खतरा मँडरा रहा है। अगर सचमुच कोई सरकार है, तो वह कैसे हाथ बाँधकर खड़ी रहे और देश को स्थिरता को खतरे में पड़ता देखती रहे? चंद लोगों को कारस्तानी से विशाल आबादी के अधिकारों को खतरा पहुँच रहा है।
“26 जून 1975 को आकाशवाणी से राष्ट्र को संबोधित करते हुए-इंदिरा गांधी”
आपातकाल का लगाने का कारण
इंदिरा गांधी का रेडियो संदेश प्रसारित होने से पहले 25 जून की रात को देश में आपातकाल लागू करने का फैसला हो चुका था | आधी रात को ही प्रधानमंत्री ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से इस फैसले पर दस्तखत करवा लिया गया था | आपातकाल लागू होते ही विपक्ष के तमाम नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया| आपातकाल 21 मार्च 1977 तक जारी रहा और इन 21 महीनों के समय को भारतीय लोकतंत्र के सबसे बुरे काल में गिना जाता है|
इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी क्यों लगाई इस सवाल के जवाब में तमाम तथ्य बताये जाते हैं जिनमे सबसे मत्वपूर्ण तथ्य यह हैं की इमरजेंसी लागू होने से पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय इंदिरा गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दिया था |12 जून 1975 को उन्हें 6 वर्षों तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य भी घोषित कर दिया था | 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर मुहर लगा दी और यह एजेंसी लगाने की तात्कालिक और सबसे बड़ी वजह बनी थी हालाँकि आपातकाल लागू करने के फैसले में इंदिरा के अलावा उनके बेटे संजय गांधी की भी अहम भूमिका बताई जाती है फैसला लेने से पहले इंद्रा गाँधी ने संजय गांधी ,तत्कालीन कानून मंत्री हरिराम गोखले, पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे समेत कुछ ख़ास सलाहकारों स बात चीत की और सभी लोग इस बात पर सहमत हुए थे |आपातकाल के दौरान देशभर में लाखों लोग गिरफ्तार हुए प्रेस सेंसरशिप के चलते दमन की तमाम खबरें लोगों के सामने ही नहीं आ पा रहे थे|
आपातकाल लगाने से इंदिरा गांधी को फायदा
25 जून 1975 की आधी रात को देश में आपातकाल लगाया गया लेकिन इससे पहले देश में राजनीतिक गहमागहमी का माहौल था | बढ़ती बेरोजगारी महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ तमाम विपक्ष सड़कों पर जमा हो चूका था भारत की जनता लोकनायक जयप्रकाश नारायण के पीछे लामबंद हो रही थी वही गुजरात और बिहार से शुरू हुआ आंदोलन देशभर में फैलने लगा| इंदिरा गांधी के सलाहकारों ने इस आंदोलन से सख्ती से निपटने की सलाह दी उनसे कहा गया कि अगर शक्ति नहीं दिखाई गई उनकी सत्ता को खतरा हो सकता हैं और इंदिरा गांधी ने वहीँ किया|
इससे पहले 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी रायबरेली सीट से निर्वाचित हुई इस चुनाव में इंदिरा गांधी ने विपक्ष के उम्मीदवार और मुख्य प्रतिद्वंदी राजनारायण को पराजित किया | चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के आरोप के साथ राजनारायण अदालत गये और 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद्द करते हुए उनको अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दिया गया | मामला सुप्रीम कोर्ट गया 24 जून को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन रद्द करने के फैसले को सही ठहराया लेकिन इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बने रहने की छूट दी लोकसभा में जा सकती थी लेकिन वहां वोट नहीं कर सकती थी|
मशहूर जयप्रकाश नारायण ने ऐलान किया कि अगर 25 जून को इंदिरा गांधी अपना पद नहीं छोड़ेंगी तो अनिश्चितकालीन देशव्यापी आंदोलन किया जाएगा | दिल्ली के रामलीला मैदान से जयप्रकाश नारायण ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता ” सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ” को नारी की तरह इस्तेमाल किया उन्होंने कहा मुझे गिरफ्तारी का डर नहीं है |
सत्ता के गलियारों में गहमा-गहमी बढ़ गई और इंदिरा गांधी ने अपने सलाहकारों से मंत्रणा के बाद आंतरिक उपद्रव की आशंका के मद्देनजर आपातकाल लगाने का फैसला किया | 25 जून की शाम को तमाम अखबारों के दफ्तर की बिजली काट दी गई इसके बाद 21 महीने बाद यानी 21 मार्च 1977 को आपातकाल हटाया गया|
आपतकाल से फ़ायदा
आपातकाल लागू करने का फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की बड़ी हार हुई है और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी|
आपातकाल के दौरान जनता ने अपनी आजादी का सबसे बुरा दौर देखा और देश में इस दौरान न केवल चुनाव के ऊपर रोक लगा दी गई बल्कि नागरिकों की बुनियादी अधिकारों को भी खत्म कर दिया गया |जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया सरकार विरोधी भाषण और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई थी|
आपातकाल के समय विपक्ष की हालत
इमरजेंसी की घोषणा के बाद इसका नकारात्मक असर समाज के हर क्षेत्र में देखने को मिला आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी विरोधी दलों के नेताओं को गिरफ्तार कर अज्ञात स्थानों पर जेल में बंद कर दिया गया | सरकार ने “मीसा यानी मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट” के तहत नेताओं को बंदी बनाया और विपक्षी दलों के सभी बड़े नेताओं मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेई ,लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस और जयप्रकाश नारायण को जेल भेज दिया गया| चंद्रशेखर जो कांग्रेस कार्यकारिणी के निर्वाचित सदस्य थे उन्हें भी गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था | इस दौरान ऐसा कानून बनाया गया जिसके तहत गिरफ्तार व्यक्ति को कोर्ट में पेश करने और जमानत मांगने का भी अधिकार नहीं था| नेताओं के गिरफ्तारी की सूचना उनके रिश्तेदारों मित्रों और सहयोगियों तक को नहीं दी गई थी और जेल में बंद नेताओं को किसी से भी मिलने की अनुमति नहीं थी| उनकी डाक तक सेंसर होती थी और मुलाकात के दौरान खुफिया अधिकारी मौजूद रहते थे|
भारत में आपातकाल के समय अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। कुल 676 नेताओं को गिरफ्तारी हुई थी। “शाह आयोग “का आकलन था कि निवारक नजरबंदी के कानूनों के जरिये लगभग एक लाख ग्यारह हजार लोगों को हिरासत में लिया गया किया।
आपातकाल के दौरान पुलिस अत्याचार और दमन आम बात थी| इस दौरान पुरुष और महिला बंदियों के साथ अमानवीय अत्याचार किया गया | आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी को सबसे पहले राजनारायण के मुकदमे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले और सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का निपटारा करना था इसलिए इन फैसलों को पलटने वाला कानून लाया गया इसके लिए संविधान को संशोधित करने की कोशिश भी की गई | आपातकाल के दौरान ही संविधान का 42वां संशोधन किया गया जिसके तहत संविधान के मूल ढांचे को कमजोर करने उसकी संघीय विशेषताओं को नुकसान पहुंचाने और सरकार के तीनों अंगों के संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश की गई|
संविधान संशोधन का दौर – आपातकाल
आपातकाल के शुरुआत में ही संविधान के अनुच्छेद 14 21 और 22 को निलंबित कर दिया गया था ऐसा करके सरकार ने कानून की नजर में सबकी बराबर जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी और गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर अदालत के सामने पेश करने के अधिकारों को रोक दिया गया | जनवरी 1976 में अनुच्छेद 19 को भी निलंबित कर दिया गया इसके जरिए अभिव्यक्ति की आजादी प्रकाशन करने संघ बनाने और सभा करने की आजादी को भी छीन लिया गया |
38 वें संशोधन के बाद न्यायपालिका से आपातकाल की न्यायिक समीक्षा का अधिकार छीना गया तो 39 वें संशोधन से प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति की जांच का अधिकार न्यायपालिका से छीन लिया | इसी तरह 40 और 41 में संशोधन के जरिए कई संवैधानिक प्रावधानों में बदलाव के बाद जब 42वां संशोधन पास किया गया तो लोगों ने “कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ इंडिया की जगह कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ इंदिरा” कहना शुरू कर दिया|
आम आदमी के मौलिक अधिकारों पर नीति निर्देशक सिद्धांतों को तरजीह देने वाला संशोधन था लेकिन 1977 में चुनाव के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी तो 43वा संसोधन के जरिये उच्च न्यायालयों को उनके अधिकार वापस दिला दिए गए | इसके बाद संविधान का 44 वां संशोधन हुआ जिसके बाद संविधान फिर से अपनी मूल अवस्था में आ गया|
इस संशोधन ने संविधान में सबसे महत्वपूर्ण बदलाव भी किया के 1975 के आपातकाल जैसी स्थिति दोबारा पैदा ही ना हो पाए और आपातकाल से जुड़े प्रावधानों में आंतरिक अशांति की जगह सशस्त्र विद्रोह शब्द जोड़ा गया है| जिसमें मौलिक अधिकारों को काफी मजबूती दी कुल मिलाकर यह दौर यह सबक भी देता है कि निरंकुश सत्ता अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल से अगर संविधान की मूल भावना में बदलाव कर भी डालती है तो जनता अपनी शक्ति से संविधान को भी संरक्षित करने का माद्दा रखती है|
आपात काल के समय -प्रेस और फिल्म जगल
आपातकाल लगते ही अखबारों पर सेंसरशिप लगा दिया गया | अखबारों और समाचार एजेंसी को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने नया कानून बनाया सरकार ने चारों समाचार एजेंसी पीटीआई यूएनआई हिंदुस्तान समाचार और समाचार भारती को खत्म कर एक नई समाचार एजेंसी बना दिया और इसके साथ ही प्रेस के लिए आचार संहिता की घोषणा कर दी गई | कई संपादकों को सरकार विरोधी लिखने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया और आपातकाल के दौरान अमृत नाहटा की फिल्म” किस्सा कुर्सी का “को जप्त कर लिया गया वहीँ किशोर कुमार जैसे गायकों को काली सूची में डाल दिया गया और आंधी फिल्म पर पाबंदी लगा दी गई थी|
आपातकाल के समय आर्थिक स्तिथि
आर्थिक मोर्चे पर भी आपातकाल का काफी नकारात्मक असर पड़ा इस दौरान आर्थिक नीति में मनचाही परिवर्तन और श्रमिकों के बुनियादी अधिकारों को कम करने की कोशिश की गई | इस दौरान जहां कहीं भी मजदूर हड़ताल हुई वहाँ उन्हें कुचलने की कोशिश की गई और आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों की रक्षा करने वाले वकीलों और जजों को भी नहीं बख्शा गया|
परिवार नियोजन और सुंदरीकरण
आपातकाल के सबसे बुरे प्रभावों में से एक था ” परिवार नियोजन” के लिए अध्यापकों और छोटे कर्मचारियों पर की गई सख्ती सभी लोगों का जबरदस्ती परिवार नियोजन किया गया परिवार नियोजन और सुंदरीकरण के नाम पर आम लोगों का काफी उत्पीड़न हुआ | आपातकाल में अफसरशाही और पुलिस को जो अभियंत्रण अधिकार मिले थे उनका बड़े पैमाने पर दुरूपयोग किया गया हालांकि इस दौरान प्रचार किया गया कि इमरजेंसी के दौरान भ्रष्टाचार कम हुआ हैं और लोगों में अनुशासन आया हैं|
लेकिन दो-तीन महीने बाद ही हालत पहले से भी ज्यादा खराब हो गई इमरजेंसी ने आम लोगों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया आपातकाल के विरोध में लोगों का गुस्सा फूटा और 1977 के आम चुनाव में जब जनता ने एकजुट होकर इंदिरा गांधी सरकार को हरा दिया और लोकतंत्र में अपनी आस्था का सबूत दे दिया |
भारतीय इतिहास का काला दिन
आपातकाल भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास के काली अध्याय के तौर पर याद किया जाता है और हमेशा याद किया जाता रहेगा ये दौर दरसल भारतीय लोकतांत्रिक मर्यादाओं की परीक्षा की घड़ी भी था | तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता में बने रहने के लिए भले ही लोकतंत्र में दिए प्रावधानों का हवाला देकर देश में आपातकाल लागू किया लेकिन जानकार और उस दौर का दंश झेल चुके लोगों की नजर में दरअसल एक अलोकतांत्रिक निर्णय था |
आपातकाल के उन 21 महीनों में इंदिरा गांधी बेहद ताकतवर सत्ताधीश बनी रहीं लेकिन इमरजेंसी के समय ही भारतीय लोकतंत्र में अधिनायकवाद के सिद्धांत को पूरी तरह से खारिज कर दिया और जानकार जनता की शासन व्यवस्था में अधिनायकवाद की हार को आपातकाल का सबसे बड़ा सबक आज भी देते हैं|
आपातकालीन राजनीतिक तौर पर देश के सामने एक बड़ा सबक यह भी रखा की आपातकाल के बाद ही देश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ | यह किसी एक दल की सरकार नहीं थी बल्कि जनता के ही द्वारा समर्थित और विपक्ष की सरकार थी जिसका दमन करने के लिए इंदिरा गांधी ने आपातकाल को हथियार बनाया था यानी लोकतंत्र में सत्ता जब निरंकुश हो जाए तो जनता नामुमकिन से देखने वाले विकल्प भी खुद ही तैयार कर लेती है|
इमरजेंसी से पहले हुए चुनाव 1971 में इंदिरा गांधी को भारी बहुमत मिला था उनके साथ बांग्लादेश में पाकिस्तान को बुरी तरह परास्त कर भारत का सिर ऊँचा करने की उपलब्धि था और घरेलु स्थर पर गरीबी हटाओ जैसे नारों से उनकी लोकप्रियता सातवें आसमान पर थी|
लेकिंग 1974 आते-आते सबकुछ बदल गया नतीजा यह हुआ की इंदिरा गांधी का आपातकाल लगा कर अपनी सता बचानी पड़ी| इस दौरान हुए जुल्मों से जनता का गुस्सा और भड़का और आखिरकार 1977 में इंदिरा गांधी बुरी तरह से हार गई |
राजनीतिक तौर पर यह दौर यह सबक भी देता है कि उपलब्धियों और लोकप्रियता के तमगे के बावजूद अगर जनता की उम्मीदों पर सता खरी नहीं उतर पाए तो बड़े से बड़ा दांव भी उल्टा पड़ जाता है लोकतंत्र में जनता की इसी शक्ति को राजनेता सबक की तरह याद रखते हैं|
मिसा और डिफेंस ऑफ इंडिया रूल
आपातकाल के दौरान देश में क्रूर कानूनों के दम पर जनता के अधिकारों का दमन चलता रहा “मिसा और डिफेंस ऑफ इंडिया रूल ” के बहाने राजनीतिक विरोधियों और आलोचकों को जेल भेजने का अधिकार सत्ता को मिला|
अनुछेद 352 से 360 -आपातकाल
आपातकाल और इसको लागू करने को लेकर भारतीय संविधान में अलग से प्रावधान किए गए हैं भारतीय संविधान के भाग 18 में अनुच्छेद 352 से लेकर 360 के बीच आपातकाल की चर्चा की गई है भारतीय संविधान में आपातकाल का प्रावधान जर्मनी के संविधान से लिया गया है|
भारतीय संविधान निर्माताओं ने जब संविधान की रचना की तो उन्होंने आपातकालीन स्थिति की भी कल्पना की यानी जब कभी राष्ट्र पर किसी तरह का संकट आए तो केंद्र सरकार के हाथ बंधे ना हो और वह बिना किसी रोक-टोक एक गंभीर निर्णय ले सके इसके लिए संविधान निर्माताओं ने संविधान में आपातकाल के लिए अलग प्रावधान बनाए|
भारतीय संविधान में तीन तरह के आपातकाल की चर्चा की गई है पहला अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल यानी युद्ध या युद्ध की संभावना या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में दूसरा अनुच्छेद 356 के तहत आपातकाल यानी राज्यों में संवैधानिक तंत्र के विफल होने की स्थिति में और तीसरा अनुच्छेद 307 के तहत यानी देश में आर्थिक संकट उत्पन्न होने की स्थिति में लागु किया जा सकता हैं|
संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि देश या देश के किसी भाग की सुरक्षा और शांति युद्ध बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण खतरे में है तो वह आपातकाल की घोषणा कर सकता है और शासन अपने हाथ में ले सकता है इसे नेशनल यानी राष्ट्रीय आपातकाल कहा जाता है|
भारतीय संविधान के 44वें संशोधन के द्वारा आंतरिक अशांति के नाम को बदलकर सशस्त्र विद्रोह कर दिया गया | संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार जब राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए या राज्यपाल यह अनुशंसा करे की राज्य में संविधान के अनुसार शासन नहीं चल रहा है तो ऐसी स्थिति में उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति राज्य के उच्च न्यायालय के अधिकारियों को छोड़कर राज्य के सभी कार्यों और अधिकारों को अपने हाथ में ले सकता है|
संविधान के अनुच्छेद 360 के अनुसार को यह विश्वास हो जाए कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिससे भारत या उसके किसी राज्य क्षेत्र के किसी भाग की आर्थिक स्थिरता और साख को खतरा है तो वह वित्तीय आपात लागू कर सकता है हालांकि देश में अभी तक आर्थिक आपातकाल लागू नहीं किया गया है|
आपातकाल कितनी बार लग चूका हैं
भारत में अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल लागू किया जा चुका है पहली बार 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय राष्ट्रीय आपातकाल लागू किया गया था जबकि दूसरी बार 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध के समय तीसरी बार 1975 में इंदिरा गांधी ने आतंरिक विरोध के नाम पर देश में आपातकाल लागू किया था|
भारत में आपातकाल सिर्फ राष्ट्रपति ही लागू कर सकते हैं लेकिन इसके लिए मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश की जरूरत होती है हालांकि 1975 में ऐसा नहीं हुआ था और इंदिरा गांधी ने मौखिक तौर पर घोषणा कर आपातकाल लागू किया था आपातकाल की घोषणा होने के 30 दिनों के भीतर इसे संसद के दोनों सदनों के दो तिहाई बहुमत से पास कराना जरूरी होता है संसद से पास होने के बाद आपातकाल 6 महीने तक लागू रह सकता है इसे अगले 6 महीने बढ़ाने के लिए दोबारा दोनों सदनों के दो तिहाई बहुमत से पास कराना होता है|
आपातकाल के बाद भारतीय राजनीति
आपातकाल खत्म हुआ और लोकसभा के चुनावों की घोषणा हुई, वैसे ही आपातकाल का सबसे जरूरी और कीमती सबक राजव्यवस्था ने सिख लिया था । 1977 के चुनाव एक तरह से आपातकाल के अनुभवों के बारे में जनमत संग्रह थे। उत्तर भारत में तो खासतौर पर क्योंकि यहाँ आपातकाल का असर सबसे ज्यादा महसूस किया गया था। विपक्ष ने ‘लोकतंत्र बचाओ’ के नारे पर चुनाव लड़ा। जनादेश निर्णायक तौर पर आपातकाल के विरुद्ध था।
भारत में आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हार गई और कांग्रेस को लोकसभा की मात्र 154 सीटें मिली उसे 35 प्रतिशत से भी कम वोट हासिल हुए। जनता पार्टी और उसके साथी दलों को लोकसभा की कुल 542 सीटों में से 330 सीटें मिलीं। राजस्थान और मध्य प्रदेश में उसे महज एक-एक सीट मिली। इंदिरा गाँधी रायबरेली से और उनके पुत्र संजय गाँधी अमेठी से चुनाव हार गए।
“सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है। भावी इतिहास हमारा है”
1974 के बिहार आंदोलन का एक नारा
1975 का वर्ष भारत के लिए उथल-पुथल से भरा रहा वही कुछ उपलब्धियां भी भारत के हाथ लगी | चलिए अब हम जानते हैं की 1975 में ही दुनिया और भारत में और कोन की घटना घट रहीं थी | हम इस पेज को 1975 में होने वाली महत्वपूर्ण घटनावों से समय समय पर अपडेट करते रहेंगे इसलिए आपके अनुरोध हैं की इस वेबसाइट ऑफ़ बुकमार्क कर ले|
S.N | 1975 में होने वाली कुछ महत्वपूर्ण घटना | संछिप्त में |
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1 | क्रिकेट का पहला विश्व कप | 1971 को इंग्लैंड व ऑस्ट्रेलिया के बीच सबसे पहला एकदिवसीय मैच मेलबर्न में खेला गया। क्रिकेट का यह छोटा संस्करण इतना लोकप्रिय हुआ कि 1975 में पहला विश्व कप खेला गया और सफल रहा। |
2 | अश्वेत शक्ति आंदोलन | आंदोलन 1966 में उभरा और 1975 तक चलता रहा। नस्लवाद् को लेकर इस आंदोलन का रवैया ज्यादा उग्र था। इसका मानना था कि अमरीका से नस्लवाद मिटाने के लिए हिंसा का सहारा लेने में भी हर्ज नहीं है। |
3 | पेरिस शांति संधि 30 अप्रैल1975 | इस समझौते से अमेरिका के साथ चला आ रहा वियतनाम टकराव तो खत्म हो गया लेकिन साइगॉन शासन और एनएलएफ के बीच टकराव जारी रहा। आखिरकार 30 अप्रैल 1975 को एनएलएफ ने राष्ट्रपति के महल पर कब्ज़ा कर लिया और वियतनाम के दोनों हिस्सों को मिला कर एक राष्ट्र की स्थापना कर दी गई। |
4 | आर्यभट्ट उपग्रह का प्रक्षेपण | अंतरिक्ष में भारत की छलाँग भारत ने 1975 में, निम्न कक्षा-उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण के साथ अंतरिक्ष युग में प्रवेश किया। कार्यक्रम के पहले कुछ वर्षों में प्रक्षेपण वाहन उस समय के सोवियत संघ द्वारा प्रदान किए गए थे। |
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