देश की रक्षा जरूरतों को पूरा करने वाले लड़ाकू विमान राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है| सुप्रीम कोर्ट उन सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया जिसमें राफ़ेल सौदे को लेकर सीबीआई के पास मामला दर्ज कराने और कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की गई थी| शीर्ष अदालत ने सौदे में कथित अनियमितताओं की हर बात को मानने से इनकार कर दिया है| कोर्ट ने कहा कि देश के लिए लड़ाकू विमान जरूरी है और उसके बगैर काम नहीं चलेगा| मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति जोसेफ के पिट ने एक मत से यह फैसला सुनाया है|
- कोर्ट में याचिका दायर करने का कारण
- सुप्रीम कोर्ट की जाँच-सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया|
- सौदे के लिए कीमत पर कोर्ट का फ़ैसला
- ऑफसेट साझीदार बनाने का मुद्दा पर कोर्ट का फ़ैसला
- राफेल विमान सौदे का इतिहास
- इन 6 विमान बनाने वाली कंपनी में से राफेल को चुना गया- बिडिंग में शामिल कंपनियां
- मोदी सरकार और राफेल विमान सौदा
- राफेल विमान को लेकर मोदी सरकार का दावा
- राफेल लड़ाकू विमान खासियत
- राफेल लड़ाकू विमान सुखोई विमान से किस तरह बेहतर है?
कोर्ट में याचिका दायर करने का कारण
10 अप्रैल 2015 को फ्रांस से पूरी तरह से तैयार 36 राफ़ेल लड़ाकू विमानों के सौदे की घोषणा की गई थी सुप्रीम कोर्ट में सौदा की जांच को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई थी| इनमें तीन प्रमुख मुद्दे थे|
- सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया|
- सौदे के लिए कीमत|
- ऑफसेट साझीदार बनाने का मुद्दा|
सुप्रीम कोर्ट की जाँच-सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया|
सुप्रीम कोर्ट ने सिलसिलेवार तरीके से अपने आदेश में इन मुद्दों से जुड़े पहलुओं को रखा और आदेश में इसकी व्याख्या की| मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में सबसे पहले निर्णय लेने की प्रक्रिया से जुड़े पहलुओं को साफ किया| सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि हमने खरीद प्रक्रिया और मूल्य निर्धारण समेत विभिन्न पहलुओं पर वायु सेना के अधिकारियों से भी जानकारी ली| कोर्ट ने आदेश में कहा कि राफेल सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है| इसमें अदालत की ओर से जांच की कोई आवश्यकता नहीं है| यह सौदा देश के लिए एक वित्तीय लाभ है| यह रक्षा से जुड़ा करार है जहां न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है|
व्यापक रूप से सौदे में प्रक्रिया का पालन किया गया है| लड़ाकू विमान की जरूरत पर को संदेह नहीं है| विमानों की गुणवत्ता सवालों के घेरे में नहीं है| कोर्ट ने आदेश में माना कि 126 लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए लंबी बातचीत से कोई परिणाम नहीं निकला| कोर्ट ने कहा कि हम 126 की जगह 36 विमानों को खरीदने के सरकार के फैसले पर सवाल नहीं उठा सकते है| कोर्ट सरकार को 126 या 36 विमान खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है| कोर्ट ने साफ कहा कि 36 राफ़ेल विमानों की खरीद की प्रक्रिया 30 सितंबर 2016 को खत्म हुई, उस वक्त सौदे पर कुछ भी सवाल नहीं उठाए गया था| कोर्ट ने कहा कि राफ़ेल सौदे पर सवाल उस वक्त हुई जब फ्रांस की पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद दिया यह न्यायिक समीक्षा का आधार नहीं हो सकता है|
सौदे के लिए कीमत पर कोर्ट का फ़ैसला
याचिका में कहा गया कि सौदे के लिए ज्यादा राशि दी गई है और आरोप लगाया कि सरकार इसकी कीमतों का खुलासा नहीं कर रही है| सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदेश के बाद सरकार ने सील बंद लिफाफे में विमान की कीमतों के बारे में कोर्ट को जानकारी दी| उससे पता चला कि सरकार ने संसद में भी विमान की मूल कीमत के अलावा मूल्य निर्धारण विवरण का खुलासा नहीं किया है| इसके पीछे कारण है कि कीमतों का विवरण देने से दोनों देशों के बीच हुए समझौते का उल्लंघन होगा और इससे राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित हो सकती है| कोर्ट ने कहा कि हमने बढ़ती लागत के साथ मूल अभिमान की कीमतों की तुलना करने के साथ ही दोनों देशों के बीच समझौते से जुड़े पहलूवो की बारीकी से जांच की है| सभी तथ्यों से साफ है कि 36 राफेल विमानों की खरीद से भारत को वाणिज्यिक लाभ हुआ है| शीर्ष अदालत ने कहा कि कीमतों के तुलनात्मक विवरण पर फैसला लेना अदालत का काम नहीं है|
ऑफसेट साझीदार बनाने का मुद्दा पर कोर्ट का फ़ैसला
ऑफसेट साझेदार से जुड़े पहलुओं पर याचिका में कहा गया था कि भारत सरकार ने करार में सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की अनदेखी कर रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को शामिल करने के लिए फ्रांस की कंपनी को मजबूर किया है| ऑफसेट साझीदार मामले पर तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि किसी भी निजी फर्म को व्यावसायिक लाभ पहुंचाने का कोई भी सबूत नहीं मिला है|ऑफसेट साझेदार के मामले में सरकारी हस्तक्षेप के लिए कोई ठोस साक्ष्य नहीं है| रिलायंस को ऑफसेट पार्टनरशिपचुनने का भी कोई सबूत नहीं है और इसमें भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है|
3 मार्च 2018 को सबसे पहले विमानों की खरीदी संबंधी केंद्र के फैसले की स्वतंत्र जांच कीमत का खुलासा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी| 5 सितंबर को कोर्ट में जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए हामी भरी थी और 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पूरी की|
राफेल विमान सौदे का इतिहास
वायु सेना की ताकत को बढ़ाने और उसकी युद्ध क्षमताओं को मजबूत बनाने के लिए समय-समय पर सरकार काम करती रहती है| इसी क्रम में सरकार ने फ्रांसीसी लड़ाकू विमान बनाने वाली कंपनी से दो इंजन वाला लड़ाकू विमान खरीदने का समझौता किया जो युद्ध के समय कई अहम भूमिका निभाने में सक्षम है| लेकिन इस सौदे को लेकर कई तरह की बातें होती रही है हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने भी को सही करार दिया है| क्या है राफेल लड़ाकू विमानों का सौदा और क्यों इसकी जरूरत भारत को पड़ी|
भारतीय वायु सेना ने अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए साल 2001 में अतिरिक्त लड़ाकू विमानों की मांग की थी| इसे ध्यान में रखते हुए जून 2001 में सरकार ने सैद्धांतिक रूप से 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने के लिए अनुमोदन किया| इसके लिए दिसंबर 2002 में एक पारदर्शी रक्षा खरीद प्रक्रिया पहली बार तैयार की गई है| साल 2005 में इस प्रक्रिया में एक ऑफसेट क्रॉस भी शामिल किया गया ताकि इसका स्वदेशी कारण और उसके प्रभाव को बढ़ाया जा सके| इसके बाद साल 2007 में वायु सेना की ओर से एम एम आर सी यानी मीडियम मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट खरीदने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया| भारत सरकार ने वायु सेना के इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने की मंजूरी दे दी और अगस्त 2007 में इसके लिए बिडिंग प्रक्रिया शुरू हुई|
इन 6 विमान बनाने वाली कंपनी में से राफेल को चुना गया- बिडिंग में शामिल कंपनियां
1.अमेरिका का बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट
2.फ्रांस का दसॉल्ट राफेल
3.ब्रिटेन का यूरोफाइटर टाइफून
4.अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्कन
5.रूस का मिकोयान मिग-35
6.स्वीडन का साब जैस 39 ग्रिपेन
साल 2011 में यह घोषणा की ब्रिटेन का यूरोफाइटर टाइफून और फ्रांस का दसॉल्ट राफेल उसके मापदंड पर खरे उतरे हैं और आखिरकार फ्रांस का दसॉल्ट राफेल को भारतीय वायु सेना के लिए चुना गया|
फ्रांस का दसॉल्ट राफेल विमान का चुनाव इसलिए किया गया कि राफेल की कीमत बाकी लड़ाकू विमानों की तुलना में कम थी साथ ही उसका रखरखाव भी सस्ता था| राफेल का चुनाव करने के बाद साल 2012 में राफेल को एल-1 बिडर घोषित किया गया और उसको बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट एविएशन के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर बातचीत शुरू हुई लेकिन 2014 तक बात अधूरी ही रही थी|
मोदी सरकार और राफेल विमान सौदा
2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार बनी तो उसने इस दिशा में फिर से प्रयास शुरू किया| प्रधानमंत्री की फ्रांस यात्रा के दौरान अप्रैल 2015 में भारत और फ्रांस के बीच इस विमान की ख़रीद को लेकर एक नई घोषणा हुई थी| इस घोषणा में भारत ने जल्द से जल्द 36 राफेल विमान फ्लाई अवे यही उड़ान के लिए तैयार विमान हासिल करने की बात कही थी| इसके बाद जनवरी 2016 में भारत और फ्रांस के बीच 36 लड़ाकू विमानों के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुआ था| सितंबर 2016 में दोनों देशों ने विमानों की आपूर्ति की शर्तों के लिए एक अंतर सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे इस समझोते के अनुसार विमानों की आपूर्ति समय सीमा के भीतर होनी थी और विमान के साथ जुड़े तमाम सिस्टम और हथियारों की आपूर्ति भी समय के अनुसार ही होनी थी|
राफेल विमान को लेकर मोदी सरकार का दावा
मोदी सरकार का दावा है कि उसने यह सौदा यूपीए सरकार से ज्यादा बेहतर कीमत में किया है| यूपीए की डील में टेक्नोलॉजी स्थानांतरण की कोई बात नहीं थी सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी की लाइसेंस देने की बात है लेकिन मौजूदा समय में मेक इन इंडिया के तहत पहल किया गया है| इस समझौते के तहत फ्रांसीसी कंपनी भारत में मेक इन इंडिया को बढ़ावा देगी| राफ़ेल विमानों को वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक सक्षम लड़ाकू विमान में से एक माना जाता है ऐसे राफ़ेल विमानों के भारतीय वायु सेना में शामिल होने से सेना की क्षमता काफी बड़ा सकेगी|
मौजूदा वक्त में दुनिया भर में सबसे ज्यादा सक्षम लड़ाकू विमानों में से एक राफेल लड़ाकू विमान कई खूबियों से लैस है दरअसल यह एक बहु उपयोगी लड़ाकू विमान है| इस विमान की लंबाई 15.27 मीटर है और इसमें एक या दो पायलट ही बैठ सकते हैं| यह विमान ऊंचाई वाले इलाकों में भी लड़ने में माहिर है| राफेल 1 मिनट में 60 फुट की ऊंचाई तक जा सकता है| यह अधिकतम 24,500 किलोग्राम का भार उठाकर उड़ने में सक्षम है|
राफेल लड़ाकू विमान खासियत
अधिकतम रफ्तार 2200 से 2500 किमी. प्रतिघंटा है|
3 हजार 800 किलोमीटर तक उड़ने में सक्षम है|
ऑप्ट्रॉनिक सिक्योर फ्रंटल इंफ्रारेड सर्च और ट्रैक सिस्टम से लैस है|
एमबीडीए एमआइसीए, एमबीडीए मेटेओर और एमबीडीए अपाचे मिसाइल से लैस है|
1.30 एमएम की एक गन एक बार में 125 राउंड गोलियां चलाने में सक्षम है|
मेटेओर मिसाइल 100 किलोमीटर दूर उड़ रहे फाइटर जेट को मार गिराने में सक्षम है|
राफेल परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है|
राफेल लड़ाकू विमान सुखोई विमान से किस तरह बेहतर है?
राफेल, सुखोई के मुकाबले काफी छोटे क्षेत्र में घूम सकता है।
सुखोई-30 के मुकाबले इसकी रेंज कई गुना ज्यादा है|
राफेल की मारक क्षमता 780-1055 किमी है|
सुखोई की मारक क्षमता 400-550 किमी है|
राफेल 24 घंटे में पांच चक्कर लगाने में सक्षम है|
सुखोई-30 केवल तीन चक्कर लगाने में सक्षम है|
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